भुलाना इतना आसान होता, तो यादों का नामो निशान न होता। कीमत जो समझ पाते हम जज़्बातों की, तो मोहब्बत लफ्ज़ यूँ बदनाम न होता। फ़र्क़ क्या पड़ता है किसी के होने न हो.
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