हमसफ़र के कांधे पर बैठकर जो
अलमस़्त हो जाते हैं,
रात होते हीं उसकी पूरी कौम की
धज्जियां उड़ाते हैं...
काग़ज और कलम से हटकर भी
शायद कोई दुनिया होती है,
अर्श पर दिखने के लिए कुछ भी
लिखा जाए इसकी कोई जरूरत
नहीं होती है ।
पर पसीने से तरबतर उसकी पेशानी
और झुके हुए कंधे दिन का बोझ
लिए ,
मुस्कुरा कर कहते हैं आ लग गले।।
#मानस ।।
©Manas Krishna
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