तुम नए अंदाज़ में मिलने आए थे
आज तुम बारिश बन कर आए थे
ऐसे आए जैसे किसी ने सोचा ना था
ना रोक पाया कोई ,कुदरत का साथ जो था
तुम आए तुम बनकर , बिन सजावट , बिन सुगंध ,बूंद बनकर
छू गए तुम मीठे फ्फ़वारे बनकर
घुल गई में तुममें हवा बनकर
बूंदों की छपक ध्वनि ,शब्द बन तुम्हारे बातें कर रहे थे मुझसे
बातें जो सच कहती थी,सच सुनती थी
पत्तों को नवीन बना
दिल पे जमी धूल दूर करती थी
तुमने आकर बताया कि
प्रेम कितना स्वच्छ है ,कितना साफ
ओछा नहीं ,उद्दंड नहीं मचाया करता
तुमने आकर बताया कि
प्रेम के छोर पर ही दुनिया ये डटी हैं
प्रेम हर युद्ध का पुरनविराम हैं
बादलों का गरजना संकेत था मानो
तुम्हारी विदाई का
पर लौटना वापिस लाज़िम था
बिना डरे- छुपे, भयहीन होकर ,आजादी से
चुकीं मौसम ये बेईमान नहीं
बेवफ़ाई तुम्हारे नाम नहीं
©Drishti Nagpal
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