सबने अपनी- अपनी व्याख्या की अपने राम,रहीम की,मेरी भी अपनी व्याख्या है,अपने राम, रहीम की। पहले तो खुद से सवाल है, क्यों ही खोजना है मुझे राम, रहीम को? क्या सबका कहा सही नहीं,या फिर ग्रंथो का लिखा मेरी नजरों में है नहीं । अब यह जिज्ञासा कहां रुकेगी, तो सोचा जिसको लेकर तर्क है, उससे ही पूछा जाए । एक बार तो अपने अंतर मन को टटोला जाए, क्या पता मिलने का तरीका अब सही होगा। सारे प्रश्नों का हाल यही होगा।
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