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daru chodne ka naya tarika

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कई दिन हुये, उस रास्ते से गुजरे जो तुम तक जाती थी। सुना है, रास्ते के पेड़ सूख गये, हाँ सूखना ही था उनको... मुहब्बत जो कि थी बहारों से, बहार चली गयी और रह गया पीछे ठूंठ। हम भी तो ऐसे ही हैं, ये घाट, ये गलियाँ सब बेकार... शहर बनारस अब रास नहीं आता। कुछ छूट गया या फिर छोड़ दिया, यह सवाल आजतक सवाल ही है.... घर के एक कोने में हमारा कमरा है जिसके रंग अब फीके हो चुके हैं। दिल थम सा गया है। शायद धड़कन मद्धम-सी हो रही है, तुम समझी नहीं... कुछ ठहर गया और हम बेपरवाह चलते रहे, न जाने कब अकेले हुये पता न चला। निदा फ़ाजली ने कहा था 'रोज जीता हुआ, रोज मरता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी', ससुरी किस्मत ने अपने दिल पर ले लिया। सांस चलना ही अगर जिन्दा रहना होता तो फिर मुहब्बत की जरूरत न थी.... शहर की आब-ओ-हवा बदल गयी पर हम अब भी वहीं हैं, तनहा, अकेले, एकदम अंधेरे में.... वहीं जहाँ तुम हमें छोड़ गयी। ❤️ 'सोच' ©मलंग

#naya  कई दिन हुये, उस रास्ते से गुजरे जो तुम तक जाती थी। सुना है, रास्ते के पेड़ सूख गये, हाँ सूखना ही था उनको... मुहब्बत जो कि थी बहारों से, बहार चली गयी और रह गया पीछे ठूंठ। 
हम भी तो ऐसे ही हैं, ये घाट, ये गलियाँ सब बेकार... शहर बनारस अब रास नहीं आता। कुछ छूट गया या फिर छोड़ दिया, यह सवाल आजतक सवाल ही है.... 
घर के एक कोने में हमारा कमरा है जिसके रंग अब फीके हो चुके हैं। दिल थम सा गया है। शायद धड़कन मद्धम-सी हो रही है, तुम समझी नहीं...
कुछ ठहर गया और हम बेपरवाह चलते रहे, न जाने कब अकेले हुये पता न चला। निदा फ़ाजली ने कहा था 'रोज जीता हुआ, रोज मरता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी', ससुरी किस्मत ने अपने दिल पर ले लिया। सांस चलना ही अगर जिन्दा रहना होता तो फिर मुहब्बत की जरूरत न थी....
शहर की आब-ओ-हवा बदल गयी पर हम अब भी वहीं हैं, तनहा, अकेले, एकदम अंधेरे में.... वहीं जहाँ तुम हमें छोड़ गयी। ❤️

'सोच'

©मलंग

#naya

15 Love

daru chodne ka naya tarika

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कई दिन हुये, उस रास्ते से गुजरे जो तुम तक जाती थी। सुना है, रास्ते के पेड़ सूख गये, हाँ सूखना ही था उनको... मुहब्बत जो कि थी बहारों से, बहार चली गयी और रह गया पीछे ठूंठ। हम भी तो ऐसे ही हैं, ये घाट, ये गलियाँ सब बेकार... शहर बनारस अब रास नहीं आता। कुछ छूट गया या फिर छोड़ दिया, यह सवाल आजतक सवाल ही है.... घर के एक कोने में हमारा कमरा है जिसके रंग अब फीके हो चुके हैं। दिल थम सा गया है। शायद धड़कन मद्धम-सी हो रही है, तुम समझी नहीं... कुछ ठहर गया और हम बेपरवाह चलते रहे, न जाने कब अकेले हुये पता न चला। निदा फ़ाजली ने कहा था 'रोज जीता हुआ, रोज मरता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी', ससुरी किस्मत ने अपने दिल पर ले लिया। सांस चलना ही अगर जिन्दा रहना होता तो फिर मुहब्बत की जरूरत न थी.... शहर की आब-ओ-हवा बदल गयी पर हम अब भी वहीं हैं, तनहा, अकेले, एकदम अंधेरे में.... वहीं जहाँ तुम हमें छोड़ गयी। ❤️ 'सोच' ©मलंग

#naya  कई दिन हुये, उस रास्ते से गुजरे जो तुम तक जाती थी। सुना है, रास्ते के पेड़ सूख गये, हाँ सूखना ही था उनको... मुहब्बत जो कि थी बहारों से, बहार चली गयी और रह गया पीछे ठूंठ। 
हम भी तो ऐसे ही हैं, ये घाट, ये गलियाँ सब बेकार... शहर बनारस अब रास नहीं आता। कुछ छूट गया या फिर छोड़ दिया, यह सवाल आजतक सवाल ही है.... 
घर के एक कोने में हमारा कमरा है जिसके रंग अब फीके हो चुके हैं। दिल थम सा गया है। शायद धड़कन मद्धम-सी हो रही है, तुम समझी नहीं...
कुछ ठहर गया और हम बेपरवाह चलते रहे, न जाने कब अकेले हुये पता न चला। निदा फ़ाजली ने कहा था 'रोज जीता हुआ, रोज मरता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी', ससुरी किस्मत ने अपने दिल पर ले लिया। सांस चलना ही अगर जिन्दा रहना होता तो फिर मुहब्बत की जरूरत न थी....
शहर की आब-ओ-हवा बदल गयी पर हम अब भी वहीं हैं, तनहा, अकेले, एकदम अंधेरे में.... वहीं जहाँ तुम हमें छोड़ गयी। ❤️

'सोच'

©मलंग

#naya

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