ये रिमझिम से मौसम ने सुनी हो गई सारे सड़के,
ये बारिश और साथ तुम्हारा ही चाहूँगी ..
ठंड से जब मुझे लगे कपकपी तो ,
तुम मुझे अपने बांहों की चादर से ढंकना चाहूँगी...
ये बारिश की बूंदे भी ये प्यासी धरती को भींगा रही,
अपने प्रेम की सदा से उसकी प्यास बुझा रही..
तुम भी अपनी प्रेम से मुझे भी सजाओ न
मैं तुम्हारे उस प्रेम से संवरना चाहूँगी
*
माना कि कुछ खता हमसे हुई तो कुछ तुमसे हुई है
मै अब सब कुछ भूलना चाहूँगी जो मैने किया
फिर से मैं तुम संग यु जीना चाहूँगी
मैं-और तुम फिर से एक नए सपने को बुनना चाहूँगी
मौसम की ये पहली बारिश और तुम्हारे संग भींगना चाहूँगी
थाम के तेरा हाथ सदा से भीगी सड़क पे चलना चाहूँगी
मैं बेफिक्र होकर अब तुझमें ही खोना चाहूँगी
तुमसे कभी रूठना तो कभी तुझे मनाना चाहूँगी
हमसे जो खुशियों के पल कही खो गए है
उन्हें तुम संग फिर से संयोज कर जीना चाहूँगी
©Shivkumar barman
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