White एक शाम उसने पूछा हमसे
की बतलाओ तुम मझको,
की कब तुझको मेरी कमी खलती ?
की कब तुझको मेरी जरूरत होती?
हंस कर मैं चुप रहता हूँ
लब्ज़ों में तुम्हारा अर्थ न समेटा,
क्या मैं समझाऊँ अब तुझको
की ना तेरी कमी होती ना तू मेरी जरूरत.
याद करना तो उन रिश्तों का गुण है,
जो अधूरे हैं, जो अलग खड़े हैं।
पर तुम और मैं, जैसे धरती और गगन,
न अलग हैं, न अधूरे, हम एक संग हैं सदा-युगम.
आकाश को धरती से क्या जरूरत कभी?
फिर भी उसके बिना वह शून्य है सभी।
धरती भी तो आकाश के आँचल में बसी,
उसके बिना वह एक अस्तित्वहीन कड़ी.
तुम मेरी साँझ की शांति, भोर की रोशनी,
तुम बिन अधूरी मेरी हर कहानी,
तुम्हारी याद में मैं नहीं उलझता
कि तुम मेरी मुझमें में संचित सदा.
©Avinash Jha
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