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सपनों को बांधते रहिए। निरंतर मेहनत करते रहिए। स्वप्न संजोए है तो पूरे भी होंगे, बस आत्मा को साधते रहिए। चेतना को मांजते रहिए।। ©Rimpi chaube

 सपनों को बांधते रहिए।
निरंतर मेहनत करते रहिए।
स्वप्न संजोए है तो पूरे भी होंगे,
बस आत्मा को साधते रहिए।
चेतना को मांजते रहिए।।

©Rimpi chaube

#चेतनाकोमाँजतेरहिए 😊 सपनों को बांधते रहिए। निरंतर मेहनत करते रहिए। स्वप्न संजोए है तो पूरे भी होंगे, बस आत्मा को साधते रहिए। चेतना को मांजते

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White गीत :- मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार । जीने का मुझको मिला , एक नया आधार ।। अब तो आठों याम मैं, करता हूँ गुणगान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। मन मेरा गद-गद रहे , पाकर ऐसा धाम । जहाँ राम मेरे पिता , मातु जानकी नाम ।। ऐसे चरणों ने मुझे , बना दिया इंसान । करता जिनकी चाकरी, बनकर मैं संतान ।। अब तो जीवन का यही , मेरे है संकल्प । जितनी भी सेवा करूँ , लगे मुझे अब अल्प ।। क्या माँगूं मैं आपसे , क्या दो अब वरदान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White गीत :-
मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार ।
जीने का मुझको मिला , एक नया आधार ।।
अब तो आठों याम मैं, करता हूँ गुणगान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

मन मेरा गद-गद रहे , पाकर ऐसा धाम ।
जहाँ राम मेरे पिता , मातु जानकी नाम ।।
ऐसे चरणों ने मुझे , बना दिया इंसान ।
करता जिनकी चाकरी, बनकर मैं संतान ।।

अब तो जीवन का यही , मेरे है संकल्प ।
जितनी भी सेवा करूँ , लगे मुझे अब अल्प ।।
क्या माँगूं मैं आपसे , क्या दो अब वरदान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार । जीने का मुझको म

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#बोलतीकविताओंकासंग्रह #स्याहीकार #काव्यSaga #my_pen_my_strength #कविता #bookstagram

एक साधारण लेखक के तौर पर अत्याधिक प्रसन्नता और बड़े ही गर्व के साथ मैं पेश करता हूँ “काव्य Saga (बोलती कविताओं का संग्रह)" जो कि मेरे द्वारा

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White थोड़ा मैं सोना चाहूँगा, स्वप्न बीज बोना चाहूँगा, उम्र क़ैद से मिली रिहाई, तेरा मैं होना चाहूँगा, काँधे पर सिर रखके पारो, जी भरकर रोना चाहूँगा, अंग संग होकर प्रेमी के, मैं ख़ुद को खोना चाहूँगा, महाकुंभ में पाप जहां का, गंगा में धोना चाहूँगा, नफ़रत की दीवार तोड़कर, दिल में इक कोना चाहूँगा, कजरारे नैनों का 'गुंजन', फिर जादू-टोना चाहूँगा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra

#स्वप्न #कविता  White थोड़ा  मैं  सोना चाहूँगा, 
स्वप्न बीज बोना चाहूँगा,

उम्र क़ैद से मिली रिहाई, 
तेरा   मैं   होना  चाहूँगा,

काँधे पर सिर रखके पारो, 
जी भरकर  रोना चाहूँगा,

अंग संग होकर  प्रेमी के, 
मैं ख़ुद को खोना चाहूँगा,

महाकुंभ में पाप जहां का, 
गंगा   में   धोना   चाहूँगा,

नफ़रत की दीवार तोड़कर, 
दिल में इक कोना चाहूँगा,

कजरारे  नैनों का  'गुंजन',
फिर  जादू-टोना   चाहूँगा,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       समस्तीपुर बिहार

©Shashi Bhushan Mishra

#स्वप्न बीज बोना चाहूँगा#

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सपनों को बांधते रहिए। निरंतर मेहनत करते रहिए। स्वप्न संजोए है तो पूरे भी होंगे, बस आत्मा को साधते रहिए। चेतना को मांजते रहिए।। ©Rimpi chaube

 सपनों को बांधते रहिए।
निरंतर मेहनत करते रहिए।
स्वप्न संजोए है तो पूरे भी होंगे,
बस आत्मा को साधते रहिए।
चेतना को मांजते रहिए।।

©Rimpi chaube

#चेतनाकोमाँजतेरहिए 😊 सपनों को बांधते रहिए। निरंतर मेहनत करते रहिए। स्वप्न संजोए है तो पूरे भी होंगे, बस आत्मा को साधते रहिए। चेतना को मांजते

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White गीत :- मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार । जीने का मुझको मिला , एक नया आधार ।। अब तो आठों याम मैं, करता हूँ गुणगान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। मन मेरा गद-गद रहे , पाकर ऐसा धाम । जहाँ राम मेरे पिता , मातु जानकी नाम ।। ऐसे चरणों ने मुझे , बना दिया इंसान । करता जिनकी चाकरी, बनकर मैं संतान ।। अब तो जीवन का यही , मेरे है संकल्प । जितनी भी सेवा करूँ , लगे मुझे अब अल्प ।। क्या माँगूं मैं आपसे , क्या दो अब वरदान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White गीत :-
मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार ।
जीने का मुझको मिला , एक नया आधार ।।
अब तो आठों याम मैं, करता हूँ गुणगान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

मन मेरा गद-गद रहे , पाकर ऐसा धाम ।
जहाँ राम मेरे पिता , मातु जानकी नाम ।।
ऐसे चरणों ने मुझे , बना दिया इंसान ।
करता जिनकी चाकरी, बनकर मैं संतान ।।

अब तो जीवन का यही , मेरे है संकल्प ।
जितनी भी सेवा करूँ , लगे मुझे अब अल्प ।।
क्या माँगूं मैं आपसे , क्या दो अब वरदान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान ।
करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- मातु-पिता के रूप में , मिले मुझे भगवान । करता जिनकी चाकरी , बनकर मैं संतान ।। जीवन मेरा धन्य है , स्वप्न सभी साकार । जीने का मुझको म

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#बोलतीकविताओंकासंग्रह #स्याहीकार #काव्यSaga #my_pen_my_strength #कविता #bookstagram

एक साधारण लेखक के तौर पर अत्याधिक प्रसन्नता और बड़े ही गर्व के साथ मैं पेश करता हूँ “काव्य Saga (बोलती कविताओं का संग्रह)" जो कि मेरे द्वारा

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White थोड़ा मैं सोना चाहूँगा, स्वप्न बीज बोना चाहूँगा, उम्र क़ैद से मिली रिहाई, तेरा मैं होना चाहूँगा, काँधे पर सिर रखके पारो, जी भरकर रोना चाहूँगा, अंग संग होकर प्रेमी के, मैं ख़ुद को खोना चाहूँगा, महाकुंभ में पाप जहां का, गंगा में धोना चाहूँगा, नफ़रत की दीवार तोड़कर, दिल में इक कोना चाहूँगा, कजरारे नैनों का 'गुंजन', फिर जादू-टोना चाहूँगा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' समस्तीपुर बिहार ©Shashi Bhushan Mishra

#स्वप्न #कविता  White थोड़ा  मैं  सोना चाहूँगा, 
स्वप्न बीज बोना चाहूँगा,

उम्र क़ैद से मिली रिहाई, 
तेरा   मैं   होना  चाहूँगा,

काँधे पर सिर रखके पारो, 
जी भरकर  रोना चाहूँगा,

अंग संग होकर  प्रेमी के, 
मैं ख़ुद को खोना चाहूँगा,

महाकुंभ में पाप जहां का, 
गंगा   में   धोना   चाहूँगा,

नफ़रत की दीवार तोड़कर, 
दिल में इक कोना चाहूँगा,

कजरारे  नैनों का  'गुंजन',
फिर  जादू-टोना   चाहूँगा,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       समस्तीपुर बिहार

©Shashi Bhushan Mishra

#स्वप्न बीज बोना चाहूँगा#

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