स्त्री
एक क़िताब की तरह होती है जिसे देखते हैं सब अपनी-अपनी ज़रुरतों के हिसाब से...
कोई सोचता है उसे एक घटिया और सस्ते उपन्यास की तरह
तो कोई घूरता है उत्सुक-सा एक हसीन रङ्गीन चित्रकथा समझ कर !
कुछ पलटते हैं इसके रङ्गीन पन्ने अपना खाली वक़्त गुज़ारने के लिए
तो कुछ रख देते हैं घर की लाइब्रेरी में सजा कर किसी बड़े लेखक की कृति की तरह स्टेटस सिम्बल बना कर !
कुछ ऐसे भी हैं जो इसे रद्दी समझ कर पटक देते हैं घर के किसी कोने में
तो कुछ बहुत उदार हो कर पूजते हैं मन्दिर में किसी आले में रख कर गीता क़ुरआन बाइबिल जैसे किसी पवित्र ग्रन्थ की तरह !
स्त्री एक क़िताब की तरह होती है जिसे पृष्ठ दर पृष्ठ कभी कोई पढ़ता नही समझता नही आवरण से ले कर अन्तिम पृष्ठ तक, सिर्फ़ देखता है टटोलता है !
और वो रह जाती है अनबांची, अनअभिव्यक्त, अभिशप्त सी
ब्याहता हो कर भी कुआंरी सी, विस्तृत हो कर भी सिमटी सी !
छुए तन में एक अनछुआ मन लिए सदा ही !!!
©Andy Mann
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here