बनकर तमाशबीन हम घूमे तमाम उम्र,
क्या ढूंढना था और क्या ढूंढे तमाम उम्र,
गुमनामियों में कट रही है ज़िंदगी की शाम,
दुनिया के पीछे भागते बीती तमाम उम्र,
अपने सभी चले गए उड़ने की आस में,
लुटती कटे पतंग की इज्ज़त तमाम उम्र,
मक़बूल मसाइल को कल पे टालते रहे,
ख़्वाबों की रोशनी में नहाये तमाम उम्र,
ठहरो ज़रा कुछ देर अपने मन में विचारो,
खाते रहोगे कब-तलक धक्के तमाम उम्र,
रहबर जिसे मिला मिली तक़दीर की चाभी,
मुर्शिद बिना मझधार में डूबे तमाम उम्र,
आई न अक्ल समय के रहते हुए 'गुंजन',
यारों कपास ओटते रहते तमाम उम्र,
---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ०प्र०
©Shashi Bhushan Mishra
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here