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New सावन रुत है आजा मां Status, Photo, Video

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#वीडियो

मां की ममता सब कुछ है दुनिया में

117 View

मां से कोमल कोई नहीं मां से शीतल कोई नहीं मां से निर्मल कोई नहीं मां से उज्ज्वल कोई नहीं ©jayanti Shailendra bajpai

#कविता #मां  मां से कोमल कोई नहीं
मां से शीतल कोई नहीं 
मां से निर्मल कोई नहीं
मां से उज्ज्वल कोई नहीं

©jayanti Shailendra bajpai

#मां

12 Love

#Videos

लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है

180 View

#Quotes  थक कर आना और तेरी गोद में सर रख कर सो जाना मां
फिर तेरा हाथ फेरना और मुझे शहलाना मां
सच कहूं तो चिंताओं से आजाद हो जाता था मां
अगर आज तू होती तो फिर सो जाता मां

©Gourav Shrivas

# मां

144 View

सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#रक्षाबंधन #भक्ति #शिवजी #सावन  सावन
डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द)

सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर ।
लख कर जलधर  , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर ।
परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर।
सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर।

©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'
 कंहा गया
वो सावन। 
पेड़ की टहनी पर डाल कर झूला
अकेले ही झूला, झूला हमने
न डर, न खोफ़ था, बेफिक्री थी। 
आज डर है, 
मेरी पैदाईश, मेरे पालन का, 
क्या झूलूं, कंहा झूलू
अब, कौन से सावन मे, 
अब, हर नज़र ललचाई, 
हर मन, हवस समाई, 
मुझे सिर्फ 'सामान' जानता है
हवस मिटाने का मकान मानता है

©arvind bhanwra ambala. India

कंहा गया वो सावन

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#वीडियो

मां की ममता सब कुछ है दुनिया में

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मां से कोमल कोई नहीं मां से शीतल कोई नहीं मां से निर्मल कोई नहीं मां से उज्ज्वल कोई नहीं ©jayanti Shailendra bajpai

#कविता #मां  मां से कोमल कोई नहीं
मां से शीतल कोई नहीं 
मां से निर्मल कोई नहीं
मां से उज्ज्वल कोई नहीं

©jayanti Shailendra bajpai

#मां

12 Love

#Videos

लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है

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#Quotes  थक कर आना और तेरी गोद में सर रख कर सो जाना मां
फिर तेरा हाथ फेरना और मुझे शहलाना मां
सच कहूं तो चिंताओं से आजाद हो जाता था मां
अगर आज तू होती तो फिर सो जाता मां

©Gourav Shrivas

# मां

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सावन डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द) सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर । लख कर जलधर , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर । परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर। सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर। ©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'

#रक्षाबंधन #भक्ति #शिवजी #सावन  सावन
डमरू घनाक्षरी (अमात्रिक छन्द)

सरसत उपवन , हरषत जन जन , बरसत जब घन , गरज गरज कर ।
लख कर जलधर  , हरषत हलधर , हरषत जलचर , नभचर थलचर ।
परत चरन जब , बहनन तब तब , बरसत नवरस , मनहर घर घर।
सकल जगत जय , जय जय उचरत ,जपत कहत सब , बम बम हर हर।

©अखिलेश त्रिपाठी 'केतन'
 कंहा गया
वो सावन। 
पेड़ की टहनी पर डाल कर झूला
अकेले ही झूला, झूला हमने
न डर, न खोफ़ था, बेफिक्री थी। 
आज डर है, 
मेरी पैदाईश, मेरे पालन का, 
क्या झूलूं, कंहा झूलू
अब, कौन से सावन मे, 
अब, हर नज़र ललचाई, 
हर मन, हवस समाई, 
मुझे सिर्फ 'सामान' जानता है
हवस मिटाने का मकान मानता है

©arvind bhanwra ambala. India

कंहा गया वो सावन

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