tags

New मैथिलीशरण गुप्त Status, Photo, Video

Find the latest Status about मैथिलीशरण गुप्त from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about मैथिलीशरण गुप्त.

  • Latest
  • Popular
  • Video

Unsplash न हो सिद्धि, साधन तो है बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है यही बहुत जो इसे सँजोऊ अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ सखा, सूत वा दूत न होऊँ पर यह जन प्रभु-जन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! माना मुक्त नहीं हो पाया, खींच मुझे यह बंधन लाया तब भी मेरी ममता-माया मिला मुझे नर-तन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! बाहर भी क्या आज खड़ा मैं काले कोसों दूर पड़ा मैं देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं तेरा खुला भवन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! ©aditi the writer

#मैथिली #कविता  Unsplash 
न हो सिद्धि, साधन तो है
बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है

यही बहुत जो इसे सँजोऊ
अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ
सखा, सूत वा दूत न होऊँ

पर यह जन प्रभु-जन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

माना मुक्त नहीं हो पाया,
खींच मुझे यह बंधन लाया
तब भी मेरी ममता-माया

मिला मुझे नर-तन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

बाहर भी क्या आज खड़ा मैं
काले कोसों दूर पड़ा मैं
देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं

तेरा खुला भवन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

©aditi the writer

#मैथिली शरण गुप्त @Kumar Shaurya @Raj Sabri @vineetapanchal @it's_ficklymoonlight

13 Love

Unsplash न हो सिद्धि, साधन तो है बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है यही बहुत जो इसे सँजोऊ अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ सखा, सूत वा दूत न होऊँ पर यह जन प्रभु-जन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! माना मुक्त नहीं हो पाया, खींच मुझे यह बंधन लाया तब भी मेरी ममता-माया मिला मुझे नर-तन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! बाहर भी क्या आज खड़ा मैं काले कोसों दूर पड़ा मैं देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं तेरा खुला भवन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! ©aditi the writer

#मैथिली #कविता  Unsplash 
न हो सिद्धि, साधन तो है
बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है

यही बहुत जो इसे सँजोऊ
अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ
सखा, सूत वा दूत न होऊँ

पर यह जन प्रभु-जन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

माना मुक्त नहीं हो पाया,
खींच मुझे यह बंधन लाया
तब भी मेरी ममता-माया

मिला मुझे नर-तन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

बाहर भी क्या आज खड़ा मैं
काले कोसों दूर पड़ा मैं
देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं

तेरा खुला भवन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

©aditi the writer

#मैथिली शरण गुप्त @Kumar Shaurya @Raj Sabri @vineetapanchal @it's_ficklymoonlight

15 Love

Unsplash न हो सिद्धि, साधन तो है बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है यही बहुत जो इसे सँजोऊ अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ सखा, सूत वा दूत न होऊँ पर यह जन प्रभु-जन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! माना मुक्त नहीं हो पाया, खींच मुझे यह बंधन लाया तब भी मेरी ममता-माया मिला मुझे नर-तन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! बाहर भी क्या आज खड़ा मैं काले कोसों दूर पड़ा मैं देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं तेरा खुला भवन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! ©aditi the writer

#मैथिली #कविता  Unsplash 
न हो सिद्धि, साधन तो है
बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है

यही बहुत जो इसे सँजोऊ
अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ
सखा, सूत वा दूत न होऊँ

पर यह जन प्रभु-जन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

माना मुक्त नहीं हो पाया,
खींच मुझे यह बंधन लाया
तब भी मेरी ममता-माया

मिला मुझे नर-तन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

बाहर भी क्या आज खड़ा मैं
काले कोसों दूर पड़ा मैं
देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं

तेरा खुला भवन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

©aditi the writer

#मैथिली शरण गुप्त @Kumar Shaurya @Raj Sabri @vineetapanchal @it's_ficklymoonlight

16 Love

White कभी कभी वहा भी बोल नही फूट पाए जहाँ जरूरी था अंतस् ने दुआएँ दी और लगा पूरे हो गए मन्नत कुछ एहसास गुप्त ऊर्जा लिए डूब जाती है कितने बार शीर्ष तक उभरती भी नअंद पर क्या वाकई हमारे अंदर विकसित अलौकिक शक्तियां फल को भी गुप्त कर देती है या सृष्टि उसे स्वीकार कर सूर्य सा दीप्तिमान रौशनी का सृजन कर भेद देती है उस प्रकृति रस के अंदर ©चाँदनी

#गुप्त  White कभी कभी वहा भी बोल नही 
फूट पाए जहाँ जरूरी था

अंतस् ने दुआएँ दी
और लगा पूरे हो गए मन्नत

कुछ एहसास गुप्त ऊर्जा लिए
डूब जाती है

 कितने बार शीर्ष तक उभरती भी नअंद

पर क्या वाकई हमारे अंदर विकसित 
अलौकिक शक्तियां फल को भी
 गुप्त कर देती है

या सृष्टि उसे स्वीकार कर 
सूर्य सा दीप्तिमान रौशनी का सृजन कर 

भेद देती है उस प्रकृति रस के अंदर

©चाँदनी

#गुप्त एहसास

18 Love

Unsplash न हो सिद्धि, साधन तो है बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है यही बहुत जो इसे सँजोऊ अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ सखा, सूत वा दूत न होऊँ पर यह जन प्रभु-जन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! माना मुक्त नहीं हो पाया, खींच मुझे यह बंधन लाया तब भी मेरी ममता-माया मिला मुझे नर-तन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! बाहर भी क्या आज खड़ा मैं काले कोसों दूर पड़ा मैं देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं तेरा खुला भवन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! ©aditi the writer

#मैथिली #कविता  Unsplash 
न हो सिद्धि, साधन तो है
बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है

यही बहुत जो इसे सँजोऊ
अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ
सखा, सूत वा दूत न होऊँ

पर यह जन प्रभु-जन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

माना मुक्त नहीं हो पाया,
खींच मुझे यह बंधन लाया
तब भी मेरी ममता-माया

मिला मुझे नर-तन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

बाहर भी क्या आज खड़ा मैं
काले कोसों दूर पड़ा मैं
देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं

तेरा खुला भवन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

©aditi the writer

#मैथिली शरण गुप्त @Kumar Shaurya @Raj Sabri @vineetapanchal @it's_ficklymoonlight

13 Love

Unsplash न हो सिद्धि, साधन तो है बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है यही बहुत जो इसे सँजोऊ अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ सखा, सूत वा दूत न होऊँ पर यह जन प्रभु-जन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! माना मुक्त नहीं हो पाया, खींच मुझे यह बंधन लाया तब भी मेरी ममता-माया मिला मुझे नर-तन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! बाहर भी क्या आज खड़ा मैं काले कोसों दूर पड़ा मैं देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं तेरा खुला भवन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! ©aditi the writer

#मैथिली #कविता  Unsplash 
न हो सिद्धि, साधन तो है
बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है

यही बहुत जो इसे सँजोऊ
अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ
सखा, सूत वा दूत न होऊँ

पर यह जन प्रभु-जन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

माना मुक्त नहीं हो पाया,
खींच मुझे यह बंधन लाया
तब भी मेरी ममता-माया

मिला मुझे नर-तन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

बाहर भी क्या आज खड़ा मैं
काले कोसों दूर पड़ा मैं
देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं

तेरा खुला भवन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

©aditi the writer

#मैथिली शरण गुप्त @Kumar Shaurya @Raj Sabri @vineetapanchal @it's_ficklymoonlight

15 Love

Unsplash न हो सिद्धि, साधन तो है बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है यही बहुत जो इसे सँजोऊ अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ सखा, सूत वा दूत न होऊँ पर यह जन प्रभु-जन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! माना मुक्त नहीं हो पाया, खींच मुझे यह बंधन लाया तब भी मेरी ममता-माया मिला मुझे नर-तन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! बाहर भी क्या आज खड़ा मैं काले कोसों दूर पड़ा मैं देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं तेरा खुला भवन तो है न हो सिद्धि, साधन तो है! ©aditi the writer

#मैथिली #कविता  Unsplash 
न हो सिद्धि, साधन तो है
बुद्धि नहीं, न सही, पर मैंने पाया अपना मन तो है

यही बहुत जो इसे सँजोऊ
अधिक-हेतु क्यों रोऊँ-धोऊँ
सखा, सूत वा दूत न होऊँ

पर यह जन प्रभु-जन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

माना मुक्त नहीं हो पाया,
खींच मुझे यह बंधन लाया
तब भी मेरी ममता-माया

मिला मुझे नर-तन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

बाहर भी क्या आज खड़ा मैं
काले कोसों दूर पड़ा मैं
देख रहा हूँ किंतु बड़ा मैं

तेरा खुला भवन तो है
न हो सिद्धि, साधन तो है!

©aditi the writer

#मैथिली शरण गुप्त @Kumar Shaurya @Raj Sabri @vineetapanchal @it's_ficklymoonlight

16 Love

White कभी कभी वहा भी बोल नही फूट पाए जहाँ जरूरी था अंतस् ने दुआएँ दी और लगा पूरे हो गए मन्नत कुछ एहसास गुप्त ऊर्जा लिए डूब जाती है कितने बार शीर्ष तक उभरती भी नअंद पर क्या वाकई हमारे अंदर विकसित अलौकिक शक्तियां फल को भी गुप्त कर देती है या सृष्टि उसे स्वीकार कर सूर्य सा दीप्तिमान रौशनी का सृजन कर भेद देती है उस प्रकृति रस के अंदर ©चाँदनी

#गुप्त  White कभी कभी वहा भी बोल नही 
फूट पाए जहाँ जरूरी था

अंतस् ने दुआएँ दी
और लगा पूरे हो गए मन्नत

कुछ एहसास गुप्त ऊर्जा लिए
डूब जाती है

 कितने बार शीर्ष तक उभरती भी नअंद

पर क्या वाकई हमारे अंदर विकसित 
अलौकिक शक्तियां फल को भी
 गुप्त कर देती है

या सृष्टि उसे स्वीकार कर 
सूर्य सा दीप्तिमान रौशनी का सृजन कर 

भेद देती है उस प्रकृति रस के अंदर

©चाँदनी

#गुप्त एहसास

18 Love

Trending Topic