White सबको अपने किए की याद है लाला,
तभी तो भीड़ उमड़ी है कुंभ के घाट पर।
पाप जो पलकों तले थे दबे हुए,
धुलने आए हैं पवित्र जल के साथ पर॥
कल तक जो थे छल-फरेब के सौदागर,
आज बने संत, लिए गंगाजल हाथ पर।
कर्मों की गठरी नहीं हल्की होती,
बस धोखा देते हैं ये धूप-छाँव के जज्बात पर॥
कोई चरण धोने को आतुर खड़ा है,
कोई माला जपता है पाप के भार पर।
पर लाला, पानी से धुलते नहीं हैं गुनाह,
जब तक सच्चा पछतावा न हो ह्रदय के थाप पर॥
कुंभ के घाट पर सैलाब उमड़ा है,
पर सच की नाव डगमगा रही है बीच धार पर।
पुण्य वही जो मन से किया जाए,
न कि धोखे से, दिखावे की बात पर॥
©Ashok Verma "Hamdard"
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