जाते-जाते जीवनभर की ख़ुशी भरी सौगात दे गया,
वो मेरे सपने में आकर सबसे सुंदर रात दे गया,
उसकी बातों में सुकून था अपनापन का आलम था,
अंधियारे की घोर निशा में दीपक बनकर मात दे गया,
अब भी उसकी बातें मन में पंछी सा कलरव करती,
भाव शून्य से जीवन में भी प्रेमपूर्ण ज़ज़्बात दे गया,
पायल की छम-छम कानों में मधुर रागिनी सी घोले,
मेरे हिस्से में आकर वो मुझको भी औक़ात दे गया,
साँसों के झूले पर रिमझिम सी फुहार मदमस्त पवन,
ऐसे में आकर निर्मोही कपटी मन को घात दे गया,
ज़रा ठहर कर पूछो ख़ुद से अपनी असली चाहत को,
दीन-धर्म, ईमान, शांति सब ख़ुद में सारी बात दे गया,
कैसे कहूँ मुकद्दर मेरे साथ नहीं चलता 'गुंजन',
हर पल साथ रहा दामन में पूरी कायनात दे गया,
---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
प्रयागराज उ॰प्र॰
©Shashi Bhushan Mishra
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