"गुनाह है क्या"
तुझसे तेरा थोड़ा सा वक्त,
मांगना गुनाह है क्या,
हम मरीज हैं तेरे इश्क के,
तुझसे दवा मांगना गुनाह है क्या।
तेरे चेहरे के चांद को देख,
चांद को शर्माना गुनाह है क्या,
तेरी झुकी नजरों के नीचे,
खुद को झुकाना गुनाह है क्या।
तेरी गलियों के रस्तों में,
अपने कदम रखना गुनाह है क्या,
तेरे नाम को अपने लबों पर,
हर बार सजाना गुनाह है क्या।
तेरी यादों के आंगन में,
अपना घर बनाना गुनाह है क्या,
तेरे ख्वाबों के फूलों में,
सपना सजाना गुनाह है क्या।
तेरी तस्वीर को तकते हुए,
खुद को खो देना गुनाह है क्या,
तेरे इश्क की लौ को दिल में,
हर पल जलाना गुनाह है क्या।
तेरे नाम की इस धड़कन को,
अपना खुदा मानना गुनाह है क्या,
हम मरीज हैं तेरे इश्क के,
तुझसे दवा मांगना गुनाह है क्या।
©HeartfeltWrites_
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