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पल्लव की डायरी योजनाओं की धुंध से ओझल जनमानस उनकी नीतियां जीवन कपकपाती है सर्द और सुन्न हो गये मन मस्तिष्क ओले राशन पानी पर गिराकर महंगाई का कहर रसोई पर बरसाती है मानक सफ़लता के सरकारों के पास है गफलत में हम, दम तोड़े जाते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"
Praveen Jain "पल्लव"
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White हरियाणवी लोकगीत एक कहवै तो दूजा सुणले, बेकार लड़ाई ना होवै। इस तरियां जै सोचै सारे, लोग हंसाई ना होवै। दो गज खातिर भाई भाई, कितने मरगे लड़कै न कितन्यां के यैं ढूंड उजड़गे, झूठी ज़िद पै अडकै न दगा करणिया लालची माणस, अंत मरै सै सड़कै न भीतर भांडे भिड़ज्यां तै, ना बाहर जाणदयो खड़कै न। फेर राई का पहाड़ बणै , जै गात समाई ना होवै। इस तरियां जै सोचै सारे, लोग हंसाई ना होवै। ©Vijay Vidrohi
Vijay Vidrohi
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White शैतान की दासतान वे कहते है। जब आप आश की एक छोटी - सी उमीद निराशा में बदल जाती है। तब काली दुनिया से कोई हमारे लिए आएसान करने के लिए तैयार रहता है। फिर वों कहते है। ना हर आएसान की कोई न कोई कीमीत होती है। ©ARBAJ Khan
ARBAJ Khan
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