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Unsplash एक खामोशी जब. गहरी अता हो... जिस्म मिटे... रूह खुदा हो... ये शोरत,नाम ,मुकाम सभी... मिट्टी, मिट्टी... या फिर धुआ, धुआ हो.. होगा हजुम आख़िरी वक़्त ख़ूब... ज़मीन पे तेरे होने पर... आखरी नींद तेरे सोने पर. ©Anudeep

#library  Unsplash एक खामोशी जब.
गहरी अता हो... 
जिस्म मिटे... 
रूह खुदा हो... 

ये  शोरत,नाम ,मुकाम सभी... 
मिट्टी, मिट्टी...
या फिर धुआ, धुआ हो.. 

होगा हजुम आख़िरी वक़्त ख़ूब... 
ज़मीन पे तेरे होने पर... 
आखरी नींद तेरे सोने पर.

©Anudeep

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18 Love

जीवन सजीव,सुखद गतिशील,क्रियाशील,दीर्घायु प्राणयुक्त,जीवनरेखा,जीवनपर्यंत,चेतनापूर्ण व्यतीत,समर्पित,संघर्षी जीवंत,सुखमय प्राण। मृत्यु भयावह,विकराल मारक,नाशक,नष्टकर अंत,विराम,काल हंता,अवरोधक,प्राणांत,निधन दमघोंटू,दुखद मौत। ©Bharat Bhushan pathak

 जीवन
सजीव,सुखद
गतिशील,क्रियाशील,दीर्घायु
प्राणयुक्त,जीवनरेखा,जीवनपर्यंत,चेतनापूर्ण
व्यतीत,समर्पित,संघर्षी
जीवंत,सुखमय
प्राण।

मृत्यु
भयावह,विकराल
मारक,नाशक,नष्टकर
अंत,विराम,काल
हंता,अवरोधक,प्राणांत,निधन
दमघोंटू,दुखद
मौत।

©Bharat Bhushan pathak

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17 Love

खेल कबड्डी सर्दी यारों,बुलवाती हर्दी-गुर्दी। हाय ठिठुर कर रातें बीती,कैसी ये गुण्डागर्दी।। दिन की लघुता करे बेचैन ,ठण्ड फोड़ती रह-रह बम। रोज सवेरे भागादौड़ी,बजकर घड़ी निकाले दम।। सोने की जब भी हो इच्छा,लेती तब ठण्ड परीक्षा। रोज सवेरे उठकर हरदम,देनी होती है शिक्षा।। सोच यही मैं लौटूँ हरदम,न अभी जी रात हुई है। सो सकूँगा अभी जी भर कर, बस ये शुरुआत हुई है। ना जाने फिर क्या हो जाता,दिन ही छोटा हो जाता। दिन की लघुता करे बेचैन,मन ये बस कहता जाता।। ©Bharat Bhushan pathak

 खेल कबड्डी सर्दी यारों,बुलवाती हर्दी-गुर्दी।
हाय ठिठुर कर रातें बीती,कैसी ये गुण्डागर्दी।।
दिन की लघुता करे बेचैन ,ठण्ड फोड़ती रह-रह बम।
रोज सवेरे भागादौड़ी,बजकर घड़ी निकाले दम।।
सोने की जब भी हो इच्छा,लेती तब ठण्ड परीक्षा।
रोज सवेरे उठकर हरदम,देनी होती है शिक्षा।।
सोच यही मैं लौटूँ हरदम,न अभी जी रात हुई है।
सो सकूँगा अभी जी भर कर,  बस ये शुरुआत हुई है।
ना जाने फिर क्या हो जाता,दिन ही छोटा हो जाता।
दिन की लघुता करे बेचैन,मन ये बस कहता जाता।।

©Bharat Bhushan pathak

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11 Love

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Unsplash एक खामोशी जब. गहरी अता हो... जिस्म मिटे... रूह खुदा हो... ये शोरत,नाम ,मुकाम सभी... मिट्टी, मिट्टी... या फिर धुआ, धुआ हो.. होगा हजुम आख़िरी वक़्त ख़ूब... ज़मीन पे तेरे होने पर... आखरी नींद तेरे सोने पर. ©Anudeep

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गहरी अता हो... 
जिस्म मिटे... 
रूह खुदा हो... 

ये  शोरत,नाम ,मुकाम सभी... 
मिट्टी, मिट्टी...
या फिर धुआ, धुआ हो.. 

होगा हजुम आख़िरी वक़्त ख़ूब... 
ज़मीन पे तेरे होने पर... 
आखरी नींद तेरे सोने पर.

©Anudeep

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जीवन सजीव,सुखद गतिशील,क्रियाशील,दीर्घायु प्राणयुक्त,जीवनरेखा,जीवनपर्यंत,चेतनापूर्ण व्यतीत,समर्पित,संघर्षी जीवंत,सुखमय प्राण। मृत्यु भयावह,विकराल मारक,नाशक,नष्टकर अंत,विराम,काल हंता,अवरोधक,प्राणांत,निधन दमघोंटू,दुखद मौत। ©Bharat Bhushan pathak

 जीवन
सजीव,सुखद
गतिशील,क्रियाशील,दीर्घायु
प्राणयुक्त,जीवनरेखा,जीवनपर्यंत,चेतनापूर्ण
व्यतीत,समर्पित,संघर्षी
जीवंत,सुखमय
प्राण।

मृत्यु
भयावह,विकराल
मारक,नाशक,नष्टकर
अंत,विराम,काल
हंता,अवरोधक,प्राणांत,निधन
दमघोंटू,दुखद
मौत।

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खेल कबड्डी सर्दी यारों,बुलवाती हर्दी-गुर्दी। हाय ठिठुर कर रातें बीती,कैसी ये गुण्डागर्दी।। दिन की लघुता करे बेचैन ,ठण्ड फोड़ती रह-रह बम। रोज सवेरे भागादौड़ी,बजकर घड़ी निकाले दम।। सोने की जब भी हो इच्छा,लेती तब ठण्ड परीक्षा। रोज सवेरे उठकर हरदम,देनी होती है शिक्षा।। सोच यही मैं लौटूँ हरदम,न अभी जी रात हुई है। सो सकूँगा अभी जी भर कर, बस ये शुरुआत हुई है। ना जाने फिर क्या हो जाता,दिन ही छोटा हो जाता। दिन की लघुता करे बेचैन,मन ये बस कहता जाता।। ©Bharat Bhushan pathak

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दिन की लघुता करे बेचैन ,ठण्ड फोड़ती रह-रह बम।
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सोने की जब भी हो इच्छा,लेती तब ठण्ड परीक्षा।
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सोच यही मैं लौटूँ हरदम,न अभी जी रात हुई है।
सो सकूँगा अभी जी भर कर,  बस ये शुरुआत हुई है।
ना जाने फिर क्या हो जाता,दिन ही छोटा हो जाता।
दिन की लघुता करे बेचैन,मन ये बस कहता जाता।।

©Bharat Bhushan pathak

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