आस्तीन के साँप बहुत थे फुर्सत में जब छाँट के देखा,
झूठ के पैरोकार बहुत थे आसपास जब झाँक के देखा,
बाँट रही खैरात सियासत मेहनतकश की झोली खाली,
नफ़रत की दीवार खड़ी थी अल्फ़ाज़ों को हाँक के देखा,
जादू-टोना, ओझा मंतर, पूजा-पाठ सभी कर डाले,
मिलती नहीं सफलता यूँही धूल सड़क की फाँक के देखा,
धरती से आकाश तलक की यात्रा सरल कहाँ होती है,
बड़ी-बड़ी मीनारों से भी करके सीना चाक के देखा,
कदम-कदम चलता है राही दिल में रख हौसला मिलन का,
मंज़िल धुँधला दिखा हमेशा सीध में जब भी नाक के देखा,
चलना बहुत ज़रूरी 'गुंजन' इतनी बात समझ में आई,
हार-जीत के पैमाने पर ख़ुद को जब भी आँक के देखा,
---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
©Shashi Bhushan Mishra
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here