नौकरी करने वालों, न करो खुद पर इतना गुमान,
उस खामोश औरत की मेहनत को भी पहचानो, जो है घर की असल जान।
बिन वेतन, बिन तालियों के वो हर दिन खप जाती है,
हर मुश्किल को मुस्कुराकर सह लेती है, फिर भी चुप रह जाती है।"
"वो है घर की बुनियाद, हर सुख-दुख की साथी,
उसके बिना अधूरी है हर खुशी, हर बात प्यासी।
चुपचाप समेटे रखती है अपने आंचल में घर की रौनक,
उसकी मेहनत से घर में बसी है सुख-शांति की सौगात।"
"हवा की तरह बहती, फिर भी उसकी पहचान खो जाती है,
घर में हर खुशी का रंग, वो खुद मिटकर सजाती है।
वो हर दर्द, हर ग़म छुपाकर अपनी मुस्कान सजाती है,
अपने हर कदम से घर में नयापन और उजाला लाती है।"
"वो ही है जो चुपचाप सारा भार उठाती है,
घर की महक और खुशियों की जड़ बन जाती है।
©नवनीत ठाकुर
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