White उम्र सारी बीत गई यही बात बताने में,
कितनों को बली चढ़ा दिया ठाठ दिखाने में।
पड़ोस की लाली भी हमेशा उदास रहती थी,
क्या कोई कदम बढ़ाया था उसको बचाने में।
कितनी बेटियां बची होती बर्बाद भी न होती,
कदम से कदम तो मिलाया होता साथ आने में।
राक्षसी हो गई है प्रवृत्ति जाने क्यों इंसान की,
काश किसी ने तो प्रयत्न किया होता राम बनाने में।
भेड़ चाल है सब मुझको दिखावा लग रहा है,
पगडंडी पर चल रहे समूहो का छलावा लग रहा है।
किया होता जत्न तो कोई चिरईया शहीद न हो पाती,
इतनी जागरूकता दिखाई होती कानून सख्त बनवाने में।
पहले पहल तो सब कुछ लिपकर छुपा दिया जाता है,
फिर नाप तोलकर समय लगता है सुर्खियां बनाने में।
आवाम इंतजार करती है देखती है मिजाज हवाओं का,
फिर भरती है दम्भ एक एक कर हाजिरी लगाने में।
काश कि निकले हैं सड़कों पर तो कुछ तो फिजा़ बदले,
इंसाफ सभी को मिलेगा बस कुछ अपनी नियत बदलें।
हर जुर्म करने वाले को सजा का खौफ होना चाहिए,
आओ अब भिड ही जाएं सजा खौफनाक बनवाने में।
रूह भी कांप उठेगी कई बार मुजरिम को डराएगी,
फिर न ही कोई 'निर्भया'आशिफा' या 'मौमिता' हो पाएगी।
फिर न ही कोई 'निर्भया'आशिफा' या 'मौमिता' हो पाएगी..prk
©प्रदीप राज खींची
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here