White अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस के उपलक्ष में मेरी रचना " एक पुरुष की पीड़ा "
बिना कोई दहेज लिए भी वो शादी करता है। माँ बाप की पसंद को भी दिल से अपनाता है।
अधिकांश ढूंढती सरकारी नौकर या धनाढ्य, पुरुष तो अनपढ़ स्त्री को भी अपनाता है।-1
कहने को तो मर्द बहुत ताकतवर होता है। पर उससे बड़ा कमज़ोर कोई नहीं होता है।
कानून भी बने हैं सारे नारी की सुरक्षा के लिए, मर्दों की कोई सुनने वाला कहाँ होता है।-2
जीवन भर अपने परिवार के लिए कमाता है। जोड़कर जमा पूंजी आशियाना बनाता है।
उसके धन को देता कानून स्त्री धन का दर्जा, उसके हिस्से में तो केवल सन्नाटा आता है।-3
बेकसूर होते हुए भी कसूरवार कहलाता है। निष्कपट होते हुए भी गुनहगार साबित होता है।
परिवार की खुशियों के लिये करता है सब, बदले में कहाँ उनसे उतना सम्मान पाता है।-4
पुरुष की पीड़ा को पुरुष ही समझ सकता है। है कोई ऐसा जो इन्हें इंसाफ दिला सकता है।
या यूँ ही जीना पड़ेगा पुरुषों को घुट घुट कर, ये सोचकर मेरा मन बहुत घबराता है।-5
पुरुष होना भी आसान कहाँ होता है। हर रोज़ हर पल बहुत सहना होता है।
दिखा नहीं सकते अपने आंसुओं को, बस लोगों से छुप कर ही रोना होता है!-6
महिलाओं का सम्मान करना होता है। उनका हर कहा हमें तो मानना होता है।
कोई हम पुरुषों से भी तो पूछ ले साहब, हमारे दिल में भी कुछ अरमान होता है!-7
पुरुष भी बेवफाई का शिकार होता है। दिल टूटने पर पुरुष को भी दर्द होता है।
भावनाओं को हमारी समझने के बजाय, पुरुष ही हर बार घृणा का पात्र होता है!-8
अंत में मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि सिर्फ औरत शोषित नहीं होती है,
मर्द भी शोषित होता है, फर्क सिर्फ इतना है कि
वो किसी से कुछ नहीं कहता है!-9
स्वरचित एवं मौलिक रचना #sumitkikalamse
✍सुमित मानधना 'गौरव', सूरत 💔
©SumitGaurav2005
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