एक ही खामी हैं
मुझ में
गलतफहमियां पाल लेती हु
सपने देखने की
जुर्रत कर बैठती हु
हज़ार सबक मिल चुके है
फ़िर भी
उम्मीदें नहीं छोड़ पाती
जानती हु की फरेब से भरी
इस दुनिया में
चकाचौंध को तवज्जो मिलती हैं
सादगी को नहीं
चापलूसों से भरे ये बाज़ार
खुद्दारी से कोसों दूर है
रूह से चाहना, बहुत ज़र्फ़ चाहिए उसके लिए
यहां चेहरों के साथ मोहब्बतें
बदल देने की रिवायत हैं
एक मैं हु,जो रक़ीबो की खराशें
भी नहीं देख सकती
और दूसरी तरफ दुनिया
जो जिस हाथ से फूल मिले
उन पे ही पत्थर पहले मारती हैं
यहां मतलब के सौदों का चलन हैं
मुझे बेमतलम ही एकतरफा मेरा इश्क़
रास आया सा हैं
बेरुखी को आला अमल समझते हैं सब
और नर्मिया मामूली बहुत लगती हैं
ग़ज़ब हैं,ये दुनिया और लोग इस के
मेरी इनसे तो नहीं बनती है...
©ashita pandey बेबाक़
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