तुम कफन में लिपटे हो
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सनातन से दूर होकर तुम जिहादियों से पीटते हो,
मेरी नजरों में तुम सदा कफन में लिपटे हो।
कब तक मोहब्बत का नारा लगाते रहोगे,
कब तक मोहब्बत में खुद को जलते रहोगे।
निशा मिट रहा है तुम्हारा , मिट जाएगा,
तुम्हारे भगवान का भजन फिर कौन गाएगा।
मुसलमान तुम्हारा ना हुआ है ना होगा कभी,
जो बिखरे हो टुकड़ों में एक हो जाओ अभी।
कहीं सर तन से जुदा , कहीं बेटी घर से जुदा,
इंसानों के हत्यारों का मालिक,वह कैसा है खुदा।
धर्म ग्रंथो को पढ़कर अपना ताकत तुम बढ़ा लो,
जिहादियों को अपने दिल से अभी तुम हटा लो।
पूजा का थाली या पेट का हो दाना,
हिंदुओं से कर लो तुम सौदा चाहे मकान हो बनाना।
भाईचारा निभाने वालों तुम तो सिर्फ काफिर हो,
कट्टर नहीं बने अगर तुम,तो कुछ पल के मुसाफिर हो।
धर्म में नहीं जातिवाद में तुम सिमटे हो,
मेरी नजरों में तुम सदा कफन में लिपटे हो।।
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प्रमोद मालाकार की कलम से...19.08.24
©pramod malakar
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