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White दोहा :- विषय  हिंदी  हिंदी भाषा का हमें , दोगे कब अधिकार । हम भी तो हैं चाहतें , हो इसका विस्तार ।। जो कहते थे मंच पर , हम हिंदी परिवार । अब कहते बच्चे पढ़े , अंग्रेजी अख़बार ।। गुरुकुल के उस ज्ञान से , विस्तृत थे संस्कार । हिंदी का भी मान था , संस्कृति थी आधार ।। वन टू थ्री अब याद है, भूले दो दो चार । बदल रहे दिन-दिन यहाँ , सबके आज विचार ।। कब हिंदी दुश्मन हुई , और रुका व्यापार । तब भी तो द चली , सत्ता पक्ष सरकार ।। हिंदी को दो मान्यता , तब आये आनंद । गीत ग़ज़ल दोहा लिखे , लिखें मधुर सब छन्द । हिंदी हिंदी कर रहे , हिंदी का गुणगान । हिंदी चाहे हिंद से , फिर अपना अभिमान ।। सुबह-शाम जो पढ़ रहे , थे गीता का सार । आज उन्हें अब चाहिए , अंग्रेजी अख़बार ।। हिंदी नंबर प्लेट पर , कट जाते चालान । ऐसे हिंदुस्तान में , हिंदी का गुणगान ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White दोहा :- विषय  हिंदी 
हिंदी भाषा का हमें , दोगे कब अधिकार ।
हम भी तो हैं चाहतें , हो इसका विस्तार ।।
जो कहते थे मंच पर , हम हिंदी परिवार ।
अब कहते बच्चे पढ़े , अंग्रेजी अख़बार ।।
गुरुकुल के उस ज्ञान से , विस्तृत थे संस्कार ।
हिंदी का भी मान था , संस्कृति थी आधार ।।
वन टू थ्री अब याद है, भूले दो दो चार ।
बदल रहे दिन-दिन यहाँ , सबके आज विचार ।।
कब हिंदी दुश्मन हुई , और रुका व्यापार ।
तब भी तो द चली , सत्ता पक्ष सरकार ।।
हिंदी को दो मान्यता , तब आये आनंद ।
गीत ग़ज़ल दोहा लिखे , लिखें मधुर सब छन्द ।
हिंदी हिंदी कर रहे , हिंदी का गुणगान ।
हिंदी चाहे हिंद से , फिर अपना अभिमान ।।
सुबह-शाम जो पढ़ रहे , थे गीता का सार ।
आज उन्हें अब चाहिए , अंग्रेजी अख़बार ।।
हिंदी नंबर प्लेट पर , कट जाते चालान ।
ऐसे हिंदुस्तान में , हिंदी का गुणगान ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- विषय  हिंदी  हिंदी भाषा का हमें , दोगे कब अधिकार । हम भी तो हैं चाहतें , हो इसका विस्तार ।। जो कहते थे मंच पर , हम हिंदी परिवार । अब

11 Love

गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती। भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए. ©person

 गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है?


यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती।

भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: 
 
हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. 
 
मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. 
 
मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. 
 
अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. 
 
उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. 
 
भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए.

©person

गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि

18 Love

#love_shayari  White ଯାତ୍ରା -19

       ତଥାପି ବଞ୍ଚିଛି 

ଏବେବି 
ମୁଁ ବଞ୍ଚିଛି ,
ତମେ ବଞ୍ଚିଛ ,
ସେମାନେ ବଞ୍ଚିଛନ୍ତି ।
ସବୁକିଛି ବୋଧେ ଶେଷ ହୋଇନାହିଁ 
ନାହିଁ ନାହିଁ ଭିତରେ ଜିଇଁଛି ଜୀବନ ,
ହତାଶାର  ମରୁଭୂମିରେ ଆଶାର ବୁଲବୁଲ ,
ବ୍ୟାସ ସରୋବରରେ ସମ୍ଭାବନାର କୋଟିଏ  ପଦ୍ମ,
ଦୂର ଦିଗବଳୟ ସେପଟେ କାହାର ବଂଶୀସ୍ବନ -
ପ୍ରଲୁବ୍ଧ କରୁଛି, ଭରିଦେଉଛି ଦେହ ମନରେ 
ଆଶାର  ମେଞ୍ଚାଏ ମହକ ।

ସମୁଦ୍ର ଭିତରେ ମୋତି ,
ବାଦଲ ପଛପଟେ ଜ୍ୱଳନ୍ତ ସୂର୍ଯ୍ୟ ,
ଆକାଶରେ ମଲାଜହ୍ନର ଏଲିଜି ,
ଅମୃତ କଳସରେ ବିଷ 
ଛାଇ ଆଲୁଅରେ ଥର ଥର କଡ ଲେଉଟଉଛି  ଜୀବନ ।

ପ୍ରେମ ଆଉ ପ୍ରତ୍ୟୟର 
ବିଶ୍ୱାସ ଆଉ ସମ୍ଭାବନାର ଯଜ୍ଞବେଦୀରେ 
ଟୋପା ଟୋପା ଲୁହ 
ତଥାପି ଗଡୁଛି ଜୀବନ ନିଃଶବ୍ଦରେ ,
ନିରାଶର ଅନ୍ଧଗଳିରେ 
ନିଶୁନ ରାଜରାସ୍ତାରେ ଏକା ଏକା 
ସାଉଁଟିବାକୁ ଭିନ୍ନଏକ ସନ୍ଦୀପ୍ତ- ବାଳଭାନୁର ଉଦୟ ଉତ୍ସବକୁ 
ହସୁଛି ଜୀବନ ମୃତ୍ୟୁକୁ ପିଠିରେ ସବାର କରି ;
ମରଣ ପଥେ ଜୀବନର ଜୟଗାନ 
କେତେ ସତ କେତେ ମିଛ 
କେତେ ସ୍ବପ୍ନ କେତେ ବାସ୍ତବ

ଜୀବନ ଶୋଇଛି ଚୁପଚାପ 
ଏକ ଜୀବନ ନଥିବା ଶବଭଳି 
ସ୍ବପ୍ନ ବିହୀନ ପୃଥିବୀରେ 
ଗୋଟା ଗୋଟା ହାଇ ମାରୁଛି 
ସତେ ଯେମିତି ଆଉଥରେ ଶୋଇଯିବ 
ସବୁଦିନ ପାଇଁ  ଘୁମନ୍ତ ପୃଥିବୀର ମୁକୁଳା ଛାତିରେ 

କିଛି ସ୍ବପ୍ନ
ଅନେକ  ଯନ୍ତ୍ରଣା 
ଟିକିଏ ହସ 
କାଣିଚାଏ ଭଲପାଇବା 
ଟୋପାଏ ବିଶ୍ୱାସ 
କିଛି ପ୍ରାପ୍ତି କିଛି ଅପ୍ରାପ୍ତି 
କିଛି ଆଶା ଆଉ ପ୍ରତିଶୃତିକୁ ନେଇ ତ  ଜୀବନ।

ସ୍ମୃତି ରଞ୍ଜନ ମହାନ୍ତି©
13.8 2020
All Copyrights Reserved
smrutiweb.wordpress.com
smrutitanuja.blogspot.com
https://www.facebook.com/titutiku/

Picture-google

©Smruti Ranjan Mohanty

#love_shayari ଯାତ୍ରା -19 ତଥାପି ବଞ୍ଚିଛି ଏବେବି ମୁଁ ବଞ୍ଚିଛି , ତମେ ବଞ୍ଚିଛ , ସେମାନେ ବଞ୍ଚିଛନ୍ତି ।

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White दोहा :- विषय  हिंदी  हिंदी भाषा का हमें , दोगे कब अधिकार । हम भी तो हैं चाहतें , हो इसका विस्तार ।। जो कहते थे मंच पर , हम हिंदी परिवार । अब कहते बच्चे पढ़े , अंग्रेजी अख़बार ।। गुरुकुल के उस ज्ञान से , विस्तृत थे संस्कार । हिंदी का भी मान था , संस्कृति थी आधार ।। वन टू थ्री अब याद है, भूले दो दो चार । बदल रहे दिन-दिन यहाँ , सबके आज विचार ।। कब हिंदी दुश्मन हुई , और रुका व्यापार । तब भी तो द चली , सत्ता पक्ष सरकार ।। हिंदी को दो मान्यता , तब आये आनंद । गीत ग़ज़ल दोहा लिखे , लिखें मधुर सब छन्द । हिंदी हिंदी कर रहे , हिंदी का गुणगान । हिंदी चाहे हिंद से , फिर अपना अभिमान ।। सुबह-शाम जो पढ़ रहे , थे गीता का सार । आज उन्हें अब चाहिए , अंग्रेजी अख़बार ।। हिंदी नंबर प्लेट पर , कट जाते चालान । ऐसे हिंदुस्तान में , हिंदी का गुणगान ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

#कविता  White दोहा :- विषय  हिंदी 
हिंदी भाषा का हमें , दोगे कब अधिकार ।
हम भी तो हैं चाहतें , हो इसका विस्तार ।।
जो कहते थे मंच पर , हम हिंदी परिवार ।
अब कहते बच्चे पढ़े , अंग्रेजी अख़बार ।।
गुरुकुल के उस ज्ञान से , विस्तृत थे संस्कार ।
हिंदी का भी मान था , संस्कृति थी आधार ।।
वन टू थ्री अब याद है, भूले दो दो चार ।
बदल रहे दिन-दिन यहाँ , सबके आज विचार ।।
कब हिंदी दुश्मन हुई , और रुका व्यापार ।
तब भी तो द चली , सत्ता पक्ष सरकार ।।
हिंदी को दो मान्यता , तब आये आनंद ।
गीत ग़ज़ल दोहा लिखे , लिखें मधुर सब छन्द ।
हिंदी हिंदी कर रहे , हिंदी का गुणगान ।
हिंदी चाहे हिंद से , फिर अपना अभिमान ।।
सुबह-शाम जो पढ़ रहे , थे गीता का सार ।
आज उन्हें अब चाहिए , अंग्रेजी अख़बार ।।
हिंदी नंबर प्लेट पर , कट जाते चालान ।
ऐसे हिंदुस्तान में , हिंदी का गुणगान ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- विषय  हिंदी  हिंदी भाषा का हमें , दोगे कब अधिकार । हम भी तो हैं चाहतें , हो इसका विस्तार ।। जो कहते थे मंच पर , हम हिंदी परिवार । अब

11 Love

गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती। भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए. ©person

 गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है?


यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के विषय में हमारा अज्ञान है। हम स्वजनों की मृत्यु की आशंका से ही भयभीत हो जाते हैं। हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका भी हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वछंद नहीं होने देती।

भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के बारे में अज्ञानता है. इसके अलावा, मनुष्य के दुखों के कुछ और कारण ये हैं: 
 
हमने जो भी अर्जित किया या पाया है, उसकी हानि की शंका हमारी चेतना को कभी पूर्णतया स्वच्छंद नहीं होने देती. 
 
मनुष्य में श्रेष्ठ गुणों का अभाव होता है. 
 
मनुष्य का शत्रुतापूर्ण और अमानवीय स्वभाव दुनिया को उदास और निराशाजनक बना देता है. 
 
अधिकांश मनुष्य इस बात का परिप्रेक्ष्य खो चुके हैं कि यह जीवन क्या है. 
 
उनकी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया अस्तित्वगत प्रक्रिया से कहीं अधिक बड़ी हो गई है. 
 
भगवद गीता के मुताबिक, मनुष्य को अपने विवेक, परिश्रम, बुद्धि और उद्यम पर संदेह नहीं करना चाहिए. उसे सदैव सत्य और स्वधर्म के पक्ष में रहना चाहिए.

©person

गीता के अनुसार मनुष्य के दुःख का कारण क्या है? यदि भगवद गीता को देखें तो हम पाते हैं कि संसार के दुखों का प्रमुख कारण आत्मा के स्वरूप के वि

18 Love

#love_shayari  White ଯାତ୍ରା -19

       ତଥାପି ବଞ୍ଚିଛି 

ଏବେବି 
ମୁଁ ବଞ୍ଚିଛି ,
ତମେ ବଞ୍ଚିଛ ,
ସେମାନେ ବଞ୍ଚିଛନ୍ତି ।
ସବୁକିଛି ବୋଧେ ଶେଷ ହୋଇନାହିଁ 
ନାହିଁ ନାହିଁ ଭିତରେ ଜିଇଁଛି ଜୀବନ ,
ହତାଶାର  ମରୁଭୂମିରେ ଆଶାର ବୁଲବୁଲ ,
ବ୍ୟାସ ସରୋବରରେ ସମ୍ଭାବନାର କୋଟିଏ  ପଦ୍ମ,
ଦୂର ଦିଗବଳୟ ସେପଟେ କାହାର ବଂଶୀସ୍ବନ -
ପ୍ରଲୁବ୍ଧ କରୁଛି, ଭରିଦେଉଛି ଦେହ ମନରେ 
ଆଶାର  ମେଞ୍ଚାଏ ମହକ ।

ସମୁଦ୍ର ଭିତରେ ମୋତି ,
ବାଦଲ ପଛପଟେ ଜ୍ୱଳନ୍ତ ସୂର୍ଯ୍ୟ ,
ଆକାଶରେ ମଲାଜହ୍ନର ଏଲିଜି ,
ଅମୃତ କଳସରେ ବିଷ 
ଛାଇ ଆଲୁଅରେ ଥର ଥର କଡ ଲେଉଟଉଛି  ଜୀବନ ।

ପ୍ରେମ ଆଉ ପ୍ରତ୍ୟୟର 
ବିଶ୍ୱାସ ଆଉ ସମ୍ଭାବନାର ଯଜ୍ଞବେଦୀରେ 
ଟୋପା ଟୋପା ଲୁହ 
ତଥାପି ଗଡୁଛି ଜୀବନ ନିଃଶବ୍ଦରେ ,
ନିରାଶର ଅନ୍ଧଗଳିରେ 
ନିଶୁନ ରାଜରାସ୍ତାରେ ଏକା ଏକା 
ସାଉଁଟିବାକୁ ଭିନ୍ନଏକ ସନ୍ଦୀପ୍ତ- ବାଳଭାନୁର ଉଦୟ ଉତ୍ସବକୁ 
ହସୁଛି ଜୀବନ ମୃତ୍ୟୁକୁ ପିଠିରେ ସବାର କରି ;
ମରଣ ପଥେ ଜୀବନର ଜୟଗାନ 
କେତେ ସତ କେତେ ମିଛ 
କେତେ ସ୍ବପ୍ନ କେତେ ବାସ୍ତବ

ଜୀବନ ଶୋଇଛି ଚୁପଚାପ 
ଏକ ଜୀବନ ନଥିବା ଶବଭଳି 
ସ୍ବପ୍ନ ବିହୀନ ପୃଥିବୀରେ 
ଗୋଟା ଗୋଟା ହାଇ ମାରୁଛି 
ସତେ ଯେମିତି ଆଉଥରେ ଶୋଇଯିବ 
ସବୁଦିନ ପାଇଁ  ଘୁମନ୍ତ ପୃଥିବୀର ମୁକୁଳା ଛାତିରେ 

କିଛି ସ୍ବପ୍ନ
ଅନେକ  ଯନ୍ତ୍ରଣା 
ଟିକିଏ ହସ 
କାଣିଚାଏ ଭଲପାଇବା 
ଟୋପାଏ ବିଶ୍ୱାସ 
କିଛି ପ୍ରାପ୍ତି କିଛି ଅପ୍ରାପ୍ତି 
କିଛି ଆଶା ଆଉ ପ୍ରତିଶୃତିକୁ ନେଇ ତ  ଜୀବନ।

ସ୍ମୃତି ରଞ୍ଜନ ମହାନ୍ତି©
13.8 2020
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©Smruti Ranjan Mohanty

#love_shayari ଯାତ୍ରା -19 ତଥାପି ବଞ୍ଚିଛି ଏବେବି ମୁଁ ବଞ୍ଚିଛି , ତମେ ବଞ୍ଚିଛ , ସେମାନେ ବଞ୍ଚିଛନ୍ତି ।

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