Geetika Chalal

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#गीतिकाचलाल #GeetikaChalal #motherlove #needyou  .
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(एक माँ की अर्ज़) मेरे लाल का ठिकाना By - गीतिका चलाल Geetika Chalal मेरे लाल का ठिकाना हमेशा बस यही सोचा - मेरा आँचल ही उसका घर है।

7 Love

वक्त कहाँ तुम्हें? मैं नाम की मोहब्बत। कहीं रोग तो नहीं? वक्त कहाँ तुम्हें? कहीं बोझ तो नहीं? तुम्हारी सुबह की शुरुआत कभी मुझसे हुई नहीं। तुम्हारे दिन का हर वक्त दफ़्तर ने छीन लिया। घड़ी ने जब आज़ाद किया तुम्हें शाम के छोर पर तुमने वो वक्त भी दोस्तों में बाँट दिया। ना सुबह तुम्हारा साथ था, न दिन से कोई उम्मीद थी। तुम्हारी शाम एक क़ैदी थी, अब बाक़ी बस रात थी। चाहत इतनी थी कि रात तरस करे मुझ पर और तुम्हारे वक्त का एक क़तरा मेरे नाम कर दे। वो क़तरा मेरा बस इतना सा काम कर दे सिर्फ़ मैं याद रहूँ तुम्हें, बाक़ी सब को अनजान कर दे। मेहरबान तुम हुए नहीं, तुम भूल गए मुझे मिलकर रात और नींद ने, कर ली फिर साज़िशें तुम बेफ़िक्र होकर सोते रहे, टूटी सी मैं सोचती रही मेरी अहमियत तुम्हारी ज़िंदगी में, आख़िरी से भी आख़िरी नहीं। ना जाने कब रात बीती- कब सुबह हो गई! पर तुम्हारी ये सुबह भी मुझसे शुरू हुई नहीं। मैं नाम की मोहब्बत। कहीं रोग तो नहीं? वक्त कहाँ तुम्हें? कहीं बोझ तो नहीं? (गीतिका चलाल) @geetikachalal04 ©Geetika Chalal

#वक्तकहाँतुम्हें #गीतिकाचलाल #GeetikaChalal #needyou  वक्त कहाँ तुम्हें? 

मैं नाम की मोहब्बत। कहीं रोग तो नहीं?
वक्त कहाँ तुम्हें? कहीं बोझ तो नहीं?

तुम्हारी सुबह की शुरुआत कभी मुझसे हुई नहीं।
तुम्हारे दिन का हर वक्त दफ़्तर ने छीन लिया।
घड़ी ने जब आज़ाद किया तुम्हें शाम के छोर पर
तुमने वो वक्त भी दोस्तों में बाँट दिया।

ना सुबह तुम्हारा साथ था, न दिन से कोई उम्मीद थी।
तुम्हारी शाम एक क़ैदी थी, अब बाक़ी बस रात थी।

चाहत इतनी थी कि रात तरस करे मुझ पर
और तुम्हारे वक्त का एक क़तरा मेरे नाम कर दे।
वो क़तरा मेरा बस इतना सा काम कर दे
सिर्फ़ मैं याद रहूँ तुम्हें, बाक़ी सब को अनजान कर दे।

मेहरबान तुम हुए नहीं, तुम भूल गए मुझे
मिलकर रात और नींद ने, कर ली फिर साज़िशें

तुम बेफ़िक्र होकर सोते रहे, टूटी सी मैं सोचती रही
मेरी अहमियत तुम्हारी ज़िंदगी में, आख़िरी से भी आख़िरी नहीं।
ना जाने कब रात बीती- कब सुबह हो गई!
पर तुम्हारी ये सुबह भी मुझसे शुरू हुई नहीं।

मैं नाम की मोहब्बत। कहीं रोग तो नहीं?
वक्त कहाँ तुम्हें? कहीं बोझ तो नहीं?
(गीतिका चलाल)
@geetikachalal04

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Love needs a little Time, Care and Attention. Only commitment of Love does not cherish the Relationship. वक्त कहाँ तुम्हें? By- गीतिका चलाल Geetika Chalal Insta- @geetikachalal04

12 Love

इश्क़ का रंग इश्क़ का रंग लेकर आया, दीवाना मुझे रंगने इक नज़र ही काफ़ी थी, मुझे लाल करने को शर्म का बोझ लादे रही, पलकें उठी न एक बार भी उसका आना ही काफ़ी था, ये दिल बदहाल करने को नाकाम दूरियां! रंग इश्क़ का, फीका न कर सकी दूरी 'दूरी' न थी, गुम रहे एक - दूजे के ख़्याल में मौसम बीते, अरसा बीता, इश्क़ भी निखरता रहा और दीवाना लौट आया, मुझे अपना बनाने हर हाल में ज़ाहिर करती कैसे, कि कब चढ़ा मुझ पर रंग उसका वो दीवाना नज़रअंदाज़ करता रहा, फिरता रहा भीड़ में शर्म भी, डर भी और कमब़ख्त! ख़ुमार इस चाहत का क्यों न रंगती इश्क़ में, क्यों न घोलती रंग तक़दीर में मैं भी हुई दीवानी, अरसे बाद मिलकर दीवाने से काबू न हुई हलचल, दिल भी न अब संभले चढ़ जाए रंग ऐसा गहरा, अब कयामत तक न उतरे आख़िर! इश्क़ का रंग लेकर आया, मेरा दीवाना मुझे रंगने (गीतिका चलाल) @geetikachalal04 ©Geetika Chalal

#गीतिकाचलाल #missingsomeone #GeetikaChalal #truefeelings #truelove  इश्क़ का रंग

इश्क़ का रंग लेकर आया, दीवाना मुझे रंगने
इक नज़र ही काफ़ी थी, मुझे लाल करने को
शर्म का बोझ लादे रही, पलकें उठी न एक बार भी
उसका आना ही काफ़ी था, ये दिल बदहाल करने को

नाकाम दूरियां! रंग इश्क़ का, फीका न कर सकी
दूरी 'दूरी' न थी, गुम रहे एक - दूजे के ख़्याल में
मौसम बीते, अरसा बीता, इश्क़ भी निखरता रहा
और दीवाना लौट आया, मुझे अपना बनाने हर हाल में

ज़ाहिर करती कैसे, कि कब चढ़ा मुझ पर रंग उसका
वो दीवाना नज़रअंदाज़ करता रहा, फिरता रहा भीड़ में
शर्म भी, डर भी और कमब़ख्त! ख़ुमार इस चाहत का
क्यों न रंगती इश्क़ में, क्यों न घोलती रंग तक़दीर में

मैं भी हुई दीवानी, अरसे बाद मिलकर दीवाने से
काबू न हुई हलचल, दिल भी न अब संभले
चढ़ जाए रंग ऐसा गहरा, अब कयामत तक न उतरे
आख़िर! इश्क़ का रंग लेकर आया, मेरा दीवाना मुझे रंगने (गीतिका चलाल) 
@geetikachalal04

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" रंग इश्क़ का है बड़ा गहरा, उतर जाए यूँही तो वो इश्क़ कहाँ?" इश्क़ का रंग By - गीतिका चलाल Geetika Chalal इश्क़ का रंग

9 Love

मुझसे प्यार करते। तुम भी वही जज़्बात रखते वही शिद्दत, वही एहसास रखते एक बार सुन लेते मुझे ग़ौर से फिर ताउम्र अपनी बात रखते ये दूरियाँ ख़ाक करते, या ख़ाक दहकता अंगार करते। या तो इल्तिजा नज़रअंदाज़ करते या मुझसे प्यार करते।। मैं यूँ न रोती ज़ार - ज़ार तन्हाई में मैं यूँ न होती बेज़ार इस जुदाई में न भीगता सिरहाना, न भीगती चादर मैं यूँ न गुम होती, यादों की परछाई में सीने से लगाते, या ख़ंजर मेरे, सीने से पार करते। या तो मेरा क़त्ल करते या मुझसे प्यार करते।। लम्बी दास्तान नहीं, बस ज़रा सी बात थी उन हालातों में न तुम बर्बाद थे, न मैं आबाद थी थाम तो लिया था हाथ मेरा, उस बचपने में पर उस दिल्लगी में, न तुम क़ैद थे, न मैं आज़ाद थी फ़रेब ही कह देते मेरी इबादत को या यक़ीन एक बार करते। या तो बेइज़्ज़ती इतनी असरदार करते या वाक़ई मुझसे प्यार करते।। (गीतिका चलाल) @geetikachalal04 ©Geetika Chalal

 मुझसे प्यार करते।

तुम भी वही जज़्बात रखते
वही शिद्दत, वही एहसास रखते
एक बार सुन लेते मुझे ग़ौर से
फिर ताउम्र अपनी बात रखते
ये दूरियाँ ख़ाक करते, या ख़ाक दहकता अंगार करते।
या तो इल्तिजा नज़रअंदाज़ करते या मुझसे प्यार करते।।

मैं यूँ न रोती ज़ार - ज़ार तन्हाई में
मैं यूँ न होती बेज़ार इस जुदाई में
न भीगता सिरहाना, न भीगती चादर
मैं यूँ न गुम होती, यादों की परछाई में
सीने से लगाते, या ख़ंजर मेरे, सीने से पार करते।
या तो मेरा क़त्ल करते या मुझसे प्यार करते।।

लम्बी दास्तान नहीं, बस ज़रा सी बात थी
उन हालातों में न तुम बर्बाद थे, न मैं आबाद थी
थाम तो लिया था हाथ मेरा, उस बचपने में
पर उस दिल्लगी में, न तुम क़ैद थे, न मैं आज़ाद थी
फ़रेब ही कह देते मेरी इबादत को या यक़ीन एक बार करते।
या तो बेइज़्ज़ती इतनी असरदार करते या वाक़ई मुझसे प्यार करते।। 
(गीतिका चलाल)
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मुझसे प्यार करते। By - गीतिका चलाल Geetika Chalal @geetikachalal04 मुझसे प्यार करते। तुम भी वही जज़्बात रखते

11 Love

माँ हिंदी नीर बहाए मूक क्यों तुम बने यहां? करते न क्यों तुम न्याय? बीच सभा में पूछ रही माँ हिंदी नीर बहाए क्यों पीड़ा न समझे पीढ़ी, क्यों करें मुझे असहाय? बधिर सभा से पूछ रही, माँ हिंदी नीर बहाए मेरे ही अंश सब तुम, मैं ही यशोदा - देवकी यदि त्याग मेरा शून्य है, परिभाषा क्या स्नेह की? लज्जा कैसे मेरे स्वर से? मैं ही प्रथम अध्याय आज मांग रही है उत्तर, माँ हिंदी नीर बहाए तीव्र समय की धार में, स्वीकारा सब परिवर्तन स्वीकारा स्वयं का खण्डन, सब कुछ किया है अर्पण क्या सम्मान नहीं इस माँ का? क्यों अपमान मेरा किया जाय? रूदित स्वर में पूछ रही, माँ हिंदी नीर बहाए क्यों मूकबधिर है सभा, क्यों खड़े सब सिर झुकाए? प्रश्न सभी से पूछ रही, माँ हिंदी नीर बहाए क्यों आघात मेरे अस्तित्व पर, कौन वास्तिवकता मेरी बचाए? निराधारों से आधार मांग रही, माँ हिंदी नीर बहाए (गीतिका चलाल) @geetikachalal04 ©Geetika Chalal

#हिंदीदिवस #हिंदीभाषा #हिंदी #IndiaLoveNojoto #GeetikaChalal  माँ हिंदी नीर बहाए

मूक क्यों तुम बने यहां? करते न क्यों तुम न्याय?
बीच सभा में पूछ रही माँ हिंदी नीर बहाए
क्यों पीड़ा न समझे पीढ़ी, क्यों करें मुझे असहाय?
बधिर सभा से पूछ रही, माँ हिंदी नीर बहाए

मेरे ही अंश सब तुम, मैं ही यशोदा - देवकी
यदि त्याग मेरा शून्य है, परिभाषा क्या स्नेह की?
लज्जा कैसे मेरे स्वर से?  मैं ही प्रथम अध्याय
आज मांग रही है उत्तर, माँ हिंदी नीर बहाए

तीव्र समय की धार में, स्वीकारा सब परिवर्तन
स्वीकारा स्वयं का खण्डन, सब कुछ किया है अर्पण
क्या सम्मान नहीं इस माँ का? क्यों अपमान मेरा किया जाय?
रूदित स्वर में पूछ रही, माँ हिंदी नीर बहाए

क्यों मूकबधिर है सभा, क्यों खड़े सब सिर झुकाए?
प्रश्न सभी से पूछ रही, माँ हिंदी नीर बहाए
क्यों आघात मेरे अस्तित्व पर, कौन वास्तिवकता मेरी बचाए?
निराधारों से आधार मांग रही, माँ हिंदी नीर बहाए (गीतिका चलाल) @geetikachalal04

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आप सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।🙏😇 माँ हिंदी नीर बहाए By- गीतिका चलाल Geetika Chalal माँ हिंदी नीर बहाए

12 Love

हमें प्रेम में रहने दो। प्रश्न अनेक उठेंगे अब हमारे प्रेम पर, गर्जन तुम्हारी मौनता की आक्रामक थी। काले मेघ बरस रहे, अभी और बरसेंगे। मेरी चपलता, तुम्हारी मौनता में विलीन थी। ये संचित प्रेम, प्रवाह से कब जल-प्रपात बना? कब दुविधाओं ने तुम्हें मुक्त किया? कैसे साहस ने तुम्हारा आलिंगन किया? ये मौनता का बाँध कैसे तुमने तोड़ लिया? मैं मानती रही अभागा स्वयं को। मेरी प्रतीक्षा का अंत न था। मैंने स्वीकारा - मैं सीता न थी। मैं दासी तुम्हारी, मैं मात्र मीरा। चक्रव्यूह अति जटिल है अब भी जाति का, धर्म का, कुल का, गोत्र का। तुममें-मुझमें, क्या सामर्थ्य है इसे तोड़ने का? चक्रव्यूह अति जटिल है अब भी दर्प में लिप्त नीति का, आडंबर में लिप्त समाज का। तुममें-मुझमें, क्या सामर्थ्य है इसे तोड़ने का? मैं निश्चिन्त हूं अब कि तुमने स्वीकारा मुझे। मैं निश्चिन्त हूं अब कि ये प्रेम कुंचित मर्म नहीं। मुझे इस क्षण हर्ष में जीने दो। मेरा ईश्वर भी जनता है - निस्वार्थ प्रेम का कोई अंत नहीं। तुम्हारी मौनता ने सिद्ध किया - प्रेम का स्वरूप केवल विवाह नहीं। तुम्हारी गर्जन ने सिद्ध किया - प्रेम में कोई भेद नहीं। निवेदन! इस समाज से। प्रार्थना! प्रत्येक नीति से। हमें मौन रहने दो। कोई प्रश्न ना करो। सब स्पष्ट है। अब केवल हमें प्रेम में रहने दो। (गीतिका चलाल) @geetikachalal04 ©Geetika Chalal

#गीतिकाचलाल #GeetikaChalal #IshqUnlimited #truefeelings #darkness  हमें प्रेम में रहने दो।

प्रश्न अनेक उठेंगे अब हमारे प्रेम पर,
गर्जन तुम्हारी मौनता की आक्रामक थी।
काले मेघ बरस रहे, अभी और बरसेंगे।
मेरी चपलता, तुम्हारी मौनता में विलीन थी।

ये संचित प्रेम, प्रवाह से कब जल-प्रपात बना?
कब दुविधाओं ने तुम्हें मुक्त किया?
कैसे साहस ने तुम्हारा आलिंगन किया?
ये मौनता का बाँध कैसे तुमने तोड़ लिया?

मैं मानती रही अभागा स्वयं को।
मेरी प्रतीक्षा का अंत न था।
मैंने स्वीकारा - मैं सीता न थी। 
मैं दासी तुम्हारी, मैं मात्र मीरा।

चक्रव्यूह अति जटिल है अब भी
जाति का, धर्म का, कुल का, गोत्र का।
तुममें-मुझमें, क्या सामर्थ्य है इसे तोड़ने का?
चक्रव्यूह अति जटिल है अब भी
दर्प में लिप्त नीति का, आडंबर में लिप्त समाज का।
तुममें-मुझमें, क्या सामर्थ्य है इसे तोड़ने का?

मैं निश्चिन्त हूं अब कि तुमने स्वीकारा मुझे।
मैं निश्चिन्त हूं अब कि ये प्रेम कुंचित मर्म नहीं।
मुझे इस क्षण हर्ष में जीने दो।
मेरा ईश्वर भी जनता है - निस्वार्थ प्रेम का कोई अंत नहीं।

तुम्हारी मौनता ने सिद्ध किया - प्रेम का स्वरूप केवल विवाह नहीं।
तुम्हारी गर्जन ने सिद्ध किया - प्रेम में कोई भेद नहीं।

निवेदन! इस समाज से। प्रार्थना! प्रत्येक नीति से।
हमें मौन रहने दो। कोई प्रश्न ना करो।
सब स्पष्ट है। अब केवल हमें प्रेम में रहने दो। (गीतिका चलाल) 
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हमें प्रेम में रहने दो। By-गीतिका चलाल हमें प्रेम में रहने दो। प्रश्न अनेक उठेंगे अब हमारे प्रेम पर, गर्जन तुम्हारी मौनता की आक्रामक थी। काले मेघ बरस रहे, अभी और बरसेंगे।

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