इश्क़ का रंग
इश्क़ का रंग लेकर आया, दीवाना मुझे रंगने
इक नज़र ही काफ़ी थी, मुझे लाल करने को
शर्म का बोझ लादे रही, पलकें उठी न एक बार भी
उसका आना ही काफ़ी था, ये दिल बदहाल करने को
नाकाम दूरियां! रंग इश्क़ का, फीका न कर सकी
दूरी 'दूरी' न थी, गुम रहे एक - दूजे के ख़्याल में
मौसम बीते, अरसा बीता, इश्क़ भी निखरता रहा
और दीवाना लौट आया, मुझे अपना बनाने हर हाल में
ज़ाहिर करती कैसे, कि कब चढ़ा मुझ पर रंग उसका
वो दीवाना नज़रअंदाज़ करता रहा, फिरता रहा भीड़ में
शर्म भी, डर भी और कमब़ख्त! ख़ुमार इस चाहत का
क्यों न रंगती इश्क़ में, क्यों न घोलती रंग तक़दीर में
मैं भी हुई दीवानी, अरसे बाद मिलकर दीवाने से
काबू न हुई हलचल, दिल भी न अब संभले
चढ़ जाए रंग ऐसा गहरा, अब कयामत तक न उतरे
आख़िर! इश्क़ का रंग लेकर आया, मेरा दीवाना मुझे रंगने (गीतिका चलाल)
@geetikachalal04
©Geetika Chalal
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