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रोज़ की जद्दोजहद में उलझता नहीं हाँ ज़िन्दगी से ज़ंग है और मैं अब लड़ता नहीं।।।
जाने किश्मत हम किस मोड़ पे ले आई है। सफर मीलों का मगर साथ ये तन्हाई है।। वक़्त सिकंदर के हाथ भी नहीं आता। इसने शाहों से भी अच्छी वफ़ा निभाई है।। सारी दुनियाँ की तस्सवुर का भरोसा कैसा। बात मेहनत की तो घरौंधा भी एक कमाई है। बीती हुई यादों ने फिरसे दस्तक दी है । घर चलो के आज घर की याद आई है।। ©Kranti Thakur
Kranti Thakur
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चाँद को पाने की तमन्ना में ज़माने जागे। कौन आता है बुझा दीपक जलाने आगे।। रात दिन छुपते रहे ग़म के सियाह सायों से। कोई अपनी परछाईयों से कहाँ भागे।। अपने चेहरे पे भी कायम हैं सिलवटों के निशाँ। देर तक दिल के आईने में हम कहाँ झाँके।। गाँठ टूटे तो माला भी चंद मोती है। हद से नाजुक हैं ये रब्त के धागे।। दुनियाँ के दिखावे का ये काफ़िला सारा। फ़क़त एक तमाशा है वक़्त के आगे।। ©Kranti Thakur
12 Love
ये आधे खुले दरीचे ये लहराते हुए पर्दे दीवारों पर उभरी हुई परछाइयां! जैसे इस झरोखे से कमरे में कोई दाख़िल हुआ हो उफ़्फ़ ये यादेँ! इनका यूँ वक़्त का पाबंद होना मुझे कभी पसँद नहीं रहा इंतज़ार का अपना ही मज़ा है जब सूरज पूरब से चढ़ते हुए पश्चिम में गहरे समँदर में डूब जाता है और चाँद आवारागर्दी करने सितारों से भरे आसमाँ की सैर पर निकल पड़ता है। बार बार घड़ी की सुइयाँ निहारना और ख्याल बुनना! वैसे तुम्हारा ख़्याल बुनते हुए कभी मुझे यह ख्याल नहीं आया की ये इंतज़ार कभी समय के पार भी जाएगा। जहाँ घूमती हुई घड़ी की सुइयों का वापस उसी मुकाम पर लौट आना भी शुरुआत होगी एक नए इंतज़ार की! ख़ैर अब तुम्हारा होना ना होना इस मुकाम पर बेमायने हैं ये मामला इश्क़ से कहीँ ज्यादा एहसासों की परवरिश का है। ©Kranti Thakur
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