Pankhilal Jogi

Pankhilal Jogi

रेत को मुट्ठी में दबोच नही पाये वो इतने वेबफा निकले सोच नहीं पाए आंसू बह पलकों से और वहकर सूख गए भीगी पलकों को अपनी पोच ना पाए❤️❤️❤️

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