काक लेकर आये मधु संदेशा करे काँव काँव,
सुनके तेरा संदेशा जमी पर नही पड़े मेरे पाँव।
राहों पर मैने पलकें औऱ बहारों ने फूल बिछाए,
पड़ते ही जमी पर क़दम तेरे महक उठा ये गाँव।
इश्क़ में तेरे पियतम बन कर के मैं जोगनिया,
नाच नाच के मैने तोड़े घुंगरू ना थके मेरे पाँव।
कभी मिलन तो कभी विरह है हमारे दरमियाँ,
होंगे साक्षी मिलन के चाँद औ' बादल की छाँव।
डाँड़ उड़ते , भवँर घूमते , नाचे नीर में पाँव मेरे,
लहराए ,हिचकौले खाए मनसागर में तेरी ये नावँ।
©आराधना
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