Shubh rai

Shubh rai

इक अधूरी किताब हु बिखरा बिखरा सा अल्फाज़ हु ना मुक़मल मंजिल की तलाश है ना हसीन सफ़र की चाह है खुद में सिमटा हुवा शुभ कोई अहसास हु

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