Shanawaz Sabir

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“बचपन में” जब धागों के बीच माचिस की डिब्बी को फँसाकर फोन-फोन खेलते थे, तो मालूम नहीं था एक दिन इस फोन में ज़िंदगी सिमटती चली जायेगी।।

“बचपन में” जब धागों के बीच माचिस की डिब्बी को फँसाकर फोन-फोन खेलते थे, तो मालूम नहीं था एक दिन इस फोन में ज़िंदगी सिमटती चली जायेगी।।

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न पाने से किसी को है न कुछ खोने से मतलब है ! ये दुनिया है, इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है.

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