कभी कभी सोचता हूँ कि
कुछ पल के लिए थाम लूँ इन्हें,
पर ना जाने क्यों सुनते ही नहीं
ये घड़ी के कांटे मेरी कोई बात,
ऐसा लगता है मानो एक तेज़ सी रफ्तार लिए
बस चले जा रहे हों मेरी ज़िंदगी का हाथ थामे
और मैं असहाय सा अपनी मौत की और
घिसटता चला जा रहा हूँ।
कुछ कहानियां लिखी नहीं जा सकती,
बस उन्हें महसूस किया जा सकता है।
कुछ एहसासों को शब्दों में बयां नहीं किया का सकता।
ये लम्हा भी कुछ ऐसा ही है।
मैं भी ऐसी ही कहानी बनना चाहता हूं।
एक ऐसा एहसास जिसकी कोई व्याख्या ना हो। मैं निकल तो पड़ा हूं इस पथ पर, मंज़िल तक ना भी पहुंच पाया तो भी मेरे सफर की कहानी कुछ अलग होगी।
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