चोट खाया हुये जानवर और चोट खाये हुए मनुष्य
लगभग एक ही समान होते हैं ।
चोट खाया जानवर इंतजार में होता है
किसी अन्य जीव पर हमला करने को
चोट खाया इंसान इंतजार में होता है
किसी अन्य मनुष्य को आहत करने को ।
चोट खाये जानवर में और चोट खाये इंसान में
केवल इतना अंतर होता है कि
जानवर कभी अपने शिकार को रोटियां नहीं डालता
घात लगाए बैठा होता है और दिखते ही झपट पड़ता है।
जबकि इंसान अपने शिकार को पालता है
उसे प्रेम से लेस देता है , उसका दाता बन जाता है
और किसी रोज़ जब शिकार पूर्णतः सौंप देता है
अपना विश्वास अपने दाता के कदमों में
झपट पड़ता है तब इंसान अपने शिकार पर ।
चोट खाया हुये जानवर और चोट खाये हुए मनुष्य
लगभग एक ही समान होते हैं ।
चोट खाया जानवर इंतजार में होता है
किसी अन्य जीव पर हमला करने को
चोट खाया इंसान इंतजार में होता है
किसी अन्य मनुष्य को आहत करने को ।
चोट खाये जानवर में और चोट खाये इंसान में
केवल इतना अंतर होता है कि
जानवर कभी अपने शिकार को रोटियां नहीं डालता
घात लगाए बैठा होता है और दिखते ही झपट पड़ता है।
जबकि इंसान अपने शिकार को पालता है
उसे प्रेम से लेस देता है , उसका दाता बन जाता है
और किसी रोज़ जब शिकार पूर्णतः सौंप देता है
अपना विश्वास अपने दाता के कदमों में
झपट पड़ता है तब इंसान अपने शिकार पर ।
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