ऐ जिंदगी.. कुछ पल ठहर.. कुछ पल ठहर..
उलझा हुआ खुद ही अंधेरों में.. उजाला हुआ.. अब तू सवर..
राते भी बीती कहानी कहने लगी है.. सुनने से न तू अब डर, ,
मौके मिलेंगे कई.. बीते लम्हों की ना कर फिकर..
ऐ जिंदगी.. कुछ पल ठहर.. कुछ पल ठहर..
~priya jha
शिकायतें जिंदगी से मिटने लगी है
ख्वाहिशें कोनो में सिसकने लगी है
चमकते चेहरे आज भी हर शाम, वजह इक बदलने लगी है...
हंसी के शोर में खो गयी यादें,यादें ख्यालों से मिटने लगी है
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