आपसे है कितनी मुहब्बत हमें
ये दिल जानता है मगर लब से कैसे कहें
नादान सा ये मेरा मन
भटक रहा तेरे बाजू काफ़िर बन
बौराई सी ये मेरी नज़र
देख रही तुझे एकटक
है कितनी तड़प हमे
ये दिल जानता है मगर लब से कैसे कहें
तू धूप सुनहरी सुबह की बन
मैं छांव दीवानी हो जाऊं
जब जब तुझे आते देखूं
हल्के मै सिमटती जाऊं
तू साहिल हो किसी सागर का
मै लहर बांवरी हो जाऊं
क्षण क्षण पल पल दौड़ी आऊं
फिर चूम तुझे मैं वापस हो जाऊं
है चाह दबी कितनी मन में
ये दिल जानता है मगर लब से कैसे कहें
तू याद मुझे कर या ना कर
तेरा नाम सांसों पे लिख डालूं मै
है चाह नहीं और कुछ मेरी
तेरे दिल मे दुनिया बसालूं में
जीवन सफल हो जाए उसदिन
जीसदिन तुझको पालूं मैं
है अरमान अभी बचे कितने
ये दिल जानता है मगर लब से कैसे कहें ।।
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