dr.rohit sarswati

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White ( घर लौट चलूँ ) मन करता है छोड़ शहर की चका चौंद को घर अपने में लौट चलूँ ! मन करता है तोड़ नौकरी की जंजीरें इस शहर को तनहा छोड़ चलूँ । छोड़ चलूँ इस चँचल मन को इस शहर की भीड़ में रोता बिल्कता ! पीछे मुड़के ना देखूँ में चला जाउँ बस आगे बढ़ता । झुटी दिखावटी इस दुनिया से अब में नाता तोड़ चलूँ ! घर अपने मे लौट चलूँ घर अपने में लौट चलूँ । ©dr.rohit sarswati

#कविता #घर  White         ( घर लौट चलूँ  )
मन करता है
छोड़ शहर की
चका चौंद को
घर अपने में
लौट चलूँ  !
मन करता है
तोड़ नौकरी की जंजीरें
इस शहर को तनहा छोड़ चलूँ ।
छोड़ चलूँ इस चँचल मन को
इस शहर की भीड़ में रोता बिल्कता !
पीछे मुड़के ना देखूँ  में
चला जाउँ बस आगे बढ़ता ।
झुटी दिखावटी इस दुनिया से
अब में नाता तोड़ चलूँ !
घर अपने मे लौट चलूँ
घर अपने में लौट चलूँ ।

©dr.rohit sarswati

#घर लौट चलूँ

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चंचल चँदा चँदा की चंचलता देखो धीमी चाल ओर चमक को देखो केसे निहारे चाँदनी उसको बादल में छुप उसे चलता देखो चँदा की चंचलता देखो ©dr.rohit sarswati

#कविता #चंचल #ThinkingMoon  चंचल चँदा
चँदा की चंचलता देखो
धीमी चाल ओर चमक को देखो
केसे निहारे चाँदनी उसको
बादल में छुप उसे चलता देखो
चँदा की चंचलता देखो

©dr.rohit sarswati

#ThinkingMoon #चंचल चँदा ( कविता )

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Physiotherapist Dr. Rohit sarswati D.P.T ©rohit sarswati

#विचार #Doobey  Physiotherapist
Dr. Rohit sarswati
         D.P.T

©rohit sarswati

#Doobey

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जिदंगी बदल गई एक तेरे आ जाने से वरना कभी हम भी गलियों के आवारा हुआ करते थे । ©rohit sarswati

#शायरी #lovequote  जिदंगी बदल गई
एक तेरे आ जाने से
वरना कभी हम भी गलियों के
आवारा हुआ करते थे ।

©rohit sarswati

#lovequote # एक लम्हा

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जो भारतीय नागरिक चंद सिक्को के लिये विदेशी सरजमीं पर जाकर अपनी मातृभाषा भूल सकते है ऐसे नागरिको को भारत का भविष्य मानना हमारी मुर्खता होगी । ©rohit sarswati

#विचार #Hindidiwas  जो भारतीय नागरिक 
चंद सिक्को के लिये
विदेशी सरजमीं पर जाकर 
अपनी मातृभाषा भूल सकते है
ऐसे नागरिको को 
भारत का भविष्य मानना
हमारी मुर्खता होगी ।

©rohit sarswati

#Hindidiwas # आंदोलन अब नही तो फिर कब ।

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कभी वीर रस, कभी श्रंगार रस, कभी हास्य रस, से प्यार किया ! मेरे हिन्द के कवियों ने सदा हिन्दी भाषा का विस्तार किया । ©rohit sarswati

#विचार #Hindidiwas  कभी वीर रस,
 
कभी श्रंगार रस,

कभी हास्य रस,

से प्यार किया !

मेरे हिन्द के

कवियों ने सदा

हिन्दी भाषा का

विस्तार किया ।

©rohit sarswati

#Hindidiwas # केवल कहने मात्र से हिन्दी भाषा को जीवित नही रखा जायेगा इसकी रक्षा के लिये सभी कलमकारों को मैदान मे उतरना होगा । कही ऐसा ना हो आने वाली पीढी को ये भी न पता हो हमारी मातृभाषा कोन सी है ।

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