White जब जब मैं कहती हूँ कि मैं कविताएं लिखती हूं, तब तब मैं झूठ कहती हूँ। मैं कविताएं नहीं लिखती वो मुझे रचती है।खुद गढ़ती है स्वयं को पन्नों पर और बस फ़िर दूर भाग जाती है । चली जाती है उस कवि के पास जिसे उसकी सबसे ज़्यादा जरुरत होती है और कभी लौटकर वापिस नहीं आती, मैं उसकी राह तकती बस उसका इंतजार करती रही।मगर वो लौट कर वापिस नहीं आयी। लेकिन एक दिन अचानक से मेरे कमरे में वो दस्तक दे जाती है।मगर मेरे कमरे में पड़े वो अक्षर बूढ़े हो रहे थे,जिनका इस्तेमाल मैं अपनी हर कविता में करती थी और उन शब्दों में जाले पड़ जाते थे।ऐसी हालत में उसे लौटना पड़ा और छोड़ना पड़ा मेरा साथ.......
©Ritika Thakur
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