kaabil78 -the poetic world

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इक पहर की तरह ये सफर चल दिया, हम बैठे रहे की कोई आवाज़ दे।....©काबिल

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#कविता #PoetryOnline #Lala_Lala #lockdown
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 मैं समंदर हूं 
मगर प्यास अपनी मैं बुझा नहीं सकता,
अफसोस की नदियों तक मैं जा नहीं सकता।
आकार गुम जाती हैं मुझमें नदियां कई ,
अफसोस मैं उनका वजूद उन्हें वापस दिला नहीं सकता।
मै समंदर हूं मगर प्यास अपनी मै बुझा नहीं सकता.....
कोई आता है मुझमें कुछ पाता है कोई कुछ खोके चला जाता है,
मुझसे मिलती होंगी बेशक खुशियां जमाने को,
मगर मायूसी को अपनी में मिया नहीं सकता।
मै समंदर हूं मगर प्यास अपनी मै बुझा नहीं सकता......
मौजूद हैं मुझमें कहीं मोती कई मगर
अफसोस मैं उन्हें खुद से बाहर ला नहीं सकता
 मैं समंदर हूं मगर प्यास अपनी मै बुझा नहीं सकता.....
अफसोस की मैं नदियों तक जा नहीं सकता....
©काबिल

मैं समंदर हूं मगर प्यास अपनी मैं बुझा नहीं सकता, अफसोस की नदियों तक मैं जा नहीं सकता। आकार गुम जाती हैं मुझमें नदियां कई , अफसोस मैं उनका वजूद उन्हें वापस दिला नहीं सकता। मै समंदर हूं मगर प्यास अपनी मै बुझा नहीं सकता..... कोई आता है मुझमें कुछ पाता है कोई कुछ खोके चला जाता है, मुझसे मिलती होंगी बेशक खुशियां जमाने को,

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