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"pee ke ghar matam chaye rang rasiya holi manaye"
Asif
Saturday, 9 July | 08:30 pm
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पता नही, जिंदगी का वो लम्हा कैसे जिएंगे। जब उसके हाथ की पहली चाय पियेंगे। क्योंकि ख्यालों में जब वो पानी उबालती है, उसमे भी एक अजीब सी महक आती है। ख्वाबों में यूं रात से सुबह हो जाती है। ये महक न दिल से ना दिमाग से जाती है। ©Asif
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एक आह भरी, कुछ अश्क बहे और शेर कहे। फिर रक़्श किए, कुछ धूल उड़ी और खाक हुए। ahmed ata ©Asif
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दूर कहीं इक लड़की है दरिया से भी गहरी है रंगों की दुनिया में घुल वो सपनों को लिखती है खुद को खोकर अक्सर वो खुद को ढूंढा करती है पार करे सागर कैसे उसकी कश्ती टूटी है सुनती क्यूं न किसी की भी कहती उसकी खामोशी खुद से बातें करती है प्यार की खातिर, सहरा बनकर फिरती है बातों से मिसरी घोले खट्टी मीठी इमली है भीतर से बिखरी बिखरी फिर भी हँसती रहती है कैसे उसको छू पाए उड़ती फिरती तितली है सजती न सँवरती फिर भी चश्मिश अच्छी लगती है. ©Asif
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