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VIJAY PRATAP
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छोड़ो यार .......... कीतना आसान है न ये युग्म शब्दों का मेरे बंद कमरे की हर ईंट को पता है मेरी सिसकियां मेरे सिरहाने गबाह मेरी घुटती – रोती चीख का ©VIJAY PRATAP
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दिल डरता है अब अपनी बात कहने से लोग आपको सुनकर समझने से ज्यादा रिश्ता तोड़ देना बेहतर समझते हैं। ©VIJAY PRATAP
अब उनसे पहले जैसी बात नहीं होती बोझल समझ कर मिलते हैं वो अब उनसे पहले जैसी मुलाकात नहीं होती रात भर जगाए.... वो अब रात नहीं होती कितना सताती है याद उनकी लेकिन अब वो साथ नही होती। ©VIJAY PRATAP
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