शुभम द्विवेदी

शुभम द्विवेदी

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ज़ब कभी तुम्हारे सामने डरते हुए अपने लफ्ज खोले कंपकपाते हुए होठों से झुकी हुई निगाहों से चिंताग्रस्त ललाट में तुम्हें खोने का डर उसके चेहरे पर साफ-साफ दिख रहा था .... तुम्हें अपने दिल का हाल सुनाते हुए वह मन ही मन तुम्हें  जिंदगी भर के लिए खो देने के डर से ससंकित था आख़िर हुआ वही जिसका भय था उसकी भावनाओं की कद्र न हुई तुम कभी उसकी न हुई.... मुझे आगे बढ़ना है बहुत कुछ पढ़ना है समाज में कुछ करना है वक़्त नहीं है,नहीं मैं..सोचती तुम भी कुछ कर लो देखना बहुत अच्छी लड़की मिलेगी.... आख़िर वह सच मान गया तुम्हारी बातों को हज़ मान गया क्या बीती होगी उसपर ज़ब सारा सच जान गया आख़िर सच तो कह देती लायक नहीं था तेरे मन से कह देती,देखो झूठ नहीं सह पाया लड़का जो सागर से लड़ जाता हवाओं से टकराता था देख तुझे वो ऐसे शर्माता था जैसे पानी-पानी हो जाता था ज़ब से उसकी बांहो में देखा है तुमको वह लड़का झूठ नहीं सह पाया है एक बार में लाखों गज़लें कहने वाला आज एक लफ़्ज़ नहीं कह पाया है। ©शुभम द्विवेदी

#KumarVishwas #walkingalone #RepublicDay #लव #Hindi  ज़ब कभी तुम्हारे सामने 
डरते हुए अपने लफ्ज खोले
कंपकपाते हुए होठों से 
झुकी हुई निगाहों से 
चिंताग्रस्त ललाट में 
तुम्हें खोने का डर 
उसके चेहरे पर साफ-साफ 
दिख रहा था ....

तुम्हें अपने दिल का हाल
सुनाते हुए वह मन ही मन 
तुम्हें  जिंदगी भर के लिए 
खो देने के डर से ससंकित था 
आख़िर हुआ वही जिसका भय था 
उसकी भावनाओं की कद्र न हुई 
तुम कभी उसकी न हुई....

मुझे आगे बढ़ना है
बहुत कुछ पढ़ना है
समाज में कुछ करना है
वक़्त नहीं है,नहीं मैं..सोचती 
तुम भी कुछ कर लो देखना 
बहुत अच्छी लड़की मिलेगी....

आख़िर वह सच मान गया 
तुम्हारी बातों को हज़ मान गया 
क्या बीती होगी उसपर
ज़ब सारा सच जान गया 
आख़िर सच तो कह देती 
लायक नहीं था तेरे 
मन से कह देती,देखो 
झूठ नहीं सह पाया लड़का 
जो सागर से लड़ जाता 
हवाओं से टकराता था 
देख तुझे वो ऐसे शर्माता था 
जैसे पानी-पानी हो जाता था
ज़ब से उसकी बांहो में देखा है तुमको 
वह लड़का झूठ नहीं सह पाया है 
एक बार में लाखों गज़लें कहने वाला 
आज एक लफ़्ज़ नहीं कह पाया है।

©शुभम द्विवेदी

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जीना क्या है? कल किसी दार्शनिक की भांति एक मित्र ने जिज्ञासा जाहिर की मैं असमंजस में पड़ गया क्या जवाब दूँ सहसा मेरे अंतर्मन से जवाब आया कि नफरतों की बाज़ार में मोहब्बत की दुकान हो कोई निर्धन या धनवान हो पूरे सभी के अरमान हों बूढा या जवान हो राजा या प्रजा हो सबका का अपना झोपडी या मकाँ हो। साक्षर हो या निरक्षर विरोधी हो या पक्षधर बराबर सम्मान हो ख़ुद पे न गुमान हो। अंत में मैंने कहा यही तो जिंदगी है अहा!अहा!अहा! वह बोला वाह!!! ©शुभम द्विवेदी

#rayofhopeजीना #कविता  जीना क्या है? कल किसी दार्शनिक की भांति 
एक मित्र ने जिज्ञासा जाहिर की 
मैं असमंजस में पड़ गया 
क्या जवाब दूँ 
सहसा मेरे अंतर्मन से जवाब आया कि 

नफरतों की बाज़ार में 
मोहब्बत की दुकान हो 
कोई निर्धन या धनवान हो 
पूरे सभी के अरमान हों

बूढा या जवान हो 
राजा या प्रजा हो 
सबका का अपना 
झोपडी या मकाँ हो।

साक्षर हो या निरक्षर 
विरोधी हो या पक्षधर 
 बराबर सम्मान हो 
 ख़ुद पे न गुमान हो।

अंत में मैंने कहा 
यही तो जिंदगी है 
अहा!अहा!अहा!
वह बोला वाह!!!

©शुभम द्विवेदी

#rayofhopeजीना क्या है

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यूँ तो संघर्ष अप्रिय लगते हैं पर मुझे बेहद प्रिय है संघर्ष करना तुम्हें मुस्कुराते हुए देखने के लिए। सैकड़ों की भीड़ में मैं तुम्हें खोज लेता हूँ इधर-उधर निगाहों के संघर्ष से। ठहठहाकों के बीच तुम्हारी मुस्कान माधुर्य और यौवन से परिपूर्ण सुकूँ देती है मेरे संघर्ष को। ©शुभम द्विवेदी

#लव  यूँ तो संघर्ष अप्रिय लगते हैं 
पर मुझे बेहद प्रिय है संघर्ष करना 
तुम्हें मुस्कुराते हुए देखने के लिए।

सैकड़ों की भीड़ में 
मैं तुम्हें खोज लेता हूँ 
इधर-उधर निगाहों के संघर्ष से।

ठहठहाकों के बीच तुम्हारी मुस्कान 
माधुर्य और यौवन से परिपूर्ण 
सुकूँ देती है मेरे संघर्ष को।

©शुभम द्विवेदी

संघर्ष

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White जानती हो अब उधर आना जाना नहीं होता सच कहूँ कि तुझे मिलने का मन नहीं होता क्या कहा तुझे अब भी मुझमें वही दिखता है जबसे उसके साथ तुझे देखा,अब भरोसा नहीं होता। ©शुभम द्विवेदी

#love_shayari #लव  White जानती हो अब उधर आना जाना नहीं होता 
सच कहूँ कि तुझे मिलने का मन नहीं होता 
क्या कहा तुझे अब भी मुझमें वही दिखता है
जबसे उसके साथ तुझे देखा,अब भरोसा नहीं होता।

©शुभम द्विवेदी

#love_shayari धोखा वाले

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green-leaves किताबों की दोस्ती कितनी अच्छी है ना मौन रहती है खुद फिर भी सब कुछ सिखा देती है अपने अंदर लिखे काले अक्षरो से ही हमें जीवन का सारा भला-बुरा सिखा देती है। ©शुभम द्विवेदी

#विचार #GreenLeaves  green-leaves किताबों की दोस्ती कितनी अच्छी है ना 
मौन रहती है खुद फिर भी सब कुछ सिखा देती है 
अपने अंदर लिखे काले अक्षरो से ही 
हमें जीवन का सारा भला-बुरा सिखा देती है।

©शुभम द्विवेदी

#GreenLeaves किताब

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Unsplash सच कहता हूँ,हाँ,मुझे उतनी ही पसंद हो तुम जितनी मेरी लिखने वाली नीली-काली कलम जैसे वो मेरी कॉपी को भर देती है अपने रंग से ठीक वैसे ही तुम भी मेरे जीवन को रंगों से भर दो। ©शुभम द्विवेदी

#लव #Book  Unsplash सच कहता हूँ,हाँ,मुझे उतनी ही पसंद हो तुम 
जितनी मेरी लिखने वाली नीली-काली कलम 
जैसे वो मेरी कॉपी को भर देती है अपने रंग से
ठीक वैसे ही तुम भी मेरे जीवन को रंगों से भर दो।

©शुभम द्विवेदी

#Book जीवन

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