दुत्कार, मानव समाज की प्रथम प्रतिक्रिया होती है, जब उनकी मान्यताओं पर प्रहार किया जाए. फिर चाहे वो प्रहार उनके स्वयं के हित के लिए ही क्यों न हो. क्योंकि सामान्य मनुष्य का सीमित ज्ञान उसे स्वयं से परे देखने नहीं देता. फिर चाहे वो मानव जीवन हो, वास्तुक्रिया या नए विचार. ब्रह्मांड में नवजीवन का सिंचन, पुराने खंडहरों की राख से ही जन्म लेता है. अश्रु, रक्त, पीड़ा, निराशा. एक साधारण मनुष्य इस मार्ग पर चलकर अजेय बन सकता है. क्योंकि विचारों की आयु मानव जीवन से कहीं अधिक है.
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