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Gulshaad Khan

Gulshaad Khan

थोड़ा बहोत लिखने की कोशिश कर लेता हूं।। दिल के अरमानों को गुलशाद, कागज़ पे उतार देता हूं, जब कोई खयाल गुनगुनाये, क़लम हाथों में उठा लेता हूं खो जाता हूं खुद की दुनियां में, जहा सिर्फ मैं और मेरे खयाल होते है, फिर बनती है शब्दो की माला , और खड़े सामने जो है जज़्ब मुझमे, मेरे जज़्बातों के सैलाब होते हैं, GULSHAAD......

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