हम सालों उसे चाहते रह गए,
रातों रात उसकी याद में जागे रह गए,
पर दूर आज़ वो मंजर है,
आँखें नम और दिल बंजर है।
पहचान जिससे होना था,
जिसके सपनों में सोना था,
आज वक्त वही है,
पर यह वक्त अपना नहीं है।
चाहने वाली चीजें मैंने ऐसे भी काफ़ी खोयी है ,
और जितना चाहा, बाद में रूह उतनी रोई है।
कुछ ग़लत हालात हैं, कुछ अपनी भी गलती है,
पर वर्तमान, भविष्य के आगे कहाँ भूत की चलती है।
आत्मा मेरी भी रोई है,
मंजर मैंने भी खोयी है,
हाँ यह अंत तो नहीं,
पर अंत ही सही,
जितनी रात मुझमें वो सोयी है,
उतनी ही आज रूह रोई है,
उतनी ही आज रूह रोई है,
उतनी ही आज....................
©unspoken_mystries
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