2 Years of Nojoto रोती-बिलखती जिंदगियों में,
उन मासूम से चेहरों की आंखों में वो सूकून देखा है मैंने,
जो मन्दिर और मस्जिद मे नही मिले मुझे,
उन कुर्बत भरी होठों पे उस अल्लाह और ईश्वर की दुआओं का सुबूत देखा है मैंने।
कुछ फटे लिबाज़ो में तो कुछ नंगे पैरो मे थे वो,
किसी के पास तो आबरू ढकने को भी लिबाज़ ना था,
उन बेज़ार से बदन के चहरों पे आशाओं का आसमान देखा है मैंने,
जो मन्दिर और मस्जिद मे नही मिले मुझे,
उन कुर्बत भरी होठों पे उस अल्लाह और ईश्वर की दुआओं का सुबूत देखा है मैंने।
कोई रोटी को बिलखता तो किसी को रोटी का कतरा ढूंढ बांटते देखा है मैंने,
कुछ चिंखे हैं उन नन्हे फरिश्तों की जिन्हें सड़क पे ठंड भरी रात में सोते देखा है मैंने,
कुछ लाशें जिन्हें मिट्टी भी नसीब ना होते देखा है मैंने,
खुश तो है हम अपनी इमारतों में, पर उन मजदूरों को हर घर की ईट उठाते देखा है मैंने,
सपनें तो उनके भी होंगे ना, ख्वाबों पे हक क्या सिर्फ हमारा ही है?
उनके ख्वाबों को आंखों के सामने मर जाते देखा है मैंने,
जो मन्दिर और मस्जिद मे नही मिले मुझे,
उन कुर्बत भरी होठों पे उस अल्लाह और ईश्वर की दुआओं का सुबूत देखा है मैंने।
©Rishabh_Mishra
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