जिस रोज़,
बांध दिया जाएगा मुझे,
मेरी अस्वीकृति के साथ,
अग्नि के उन सात फेरों में
और इस विरोधाभास में,
मेरे आत्मा जल रही होगी
रिश्तों की प्रीति-कलह में,
उस रोज,
मेरी देह के प्रत्येक भाग पे,
मुझे स्पर्श करते हुए आएगी,
बारिश की उन तमाम बूंदों में
मेरी लिखी हुई समस्त कविताएं,
जो मेरे दग्ध हृदय पे उकेरेगी,
जीवन की एक नई परिभाषा,
व मिटा देगी रस्मों -रिवाजों की
खींची गई अनगिनत रेखाएं,
और इस रूहानी छुअन के संग,
जो आजाद कर देगी मुझे,
नश्वर जीवन के मोहपाश से,
उस रोज़,
लीक से हटकर मैं लूंगी एक,
'आठवां फेरा'
अपनी कविताओं के साथ,
व आरंभ होगा,
मेरी आत्मस्वीकृति के साथ,
काव्यात्मक सफ़र...
- ©️ हिमाद्रि पाल / Himadri Pal
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