जिम्मेदार नागरिक जनाज़े पे मेरे अश्क बहाना जरूरी था
क़त्ल किसने किया ये बताना जरूरी था
सजाया था हमने भी इक आशियाना अपना
जमीं समन्दर की थी डूब जाना जरूरी था
सहमे थे लोग ऊजाले की बंदिशो से
अब अमावस का लौट आना जरूरी था
नही जानते क्या काफ़िया रदीफ़ क्या
उस गज़ल का होंठो पे आना जरूरी था
भले समझ ना आया इक हर्फ़ भी हमे
ग़ज़ल तेरी थी मुस्कुराना जरूरी था
नभ धरा नदीश ऋतुराज सभी के
होटों पर मुस्कान है
तीन रंग मे लिपटे है ओर
आँखो मे हिन्दुस्तान है
प्रेम फर्ज़ गणतंत्र दया का
हाथो मे अधिकार लिए
आज सजी फिर भारत माता
संग सारा संसार लिए
बलिदान त्याग की जीवंत कथा
माथे पर अभिमान है
तीन रंग का परिधान है माँ का
ओर आँखो मे हिन्दुस्तान है..
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