"जिम्मेदार नागरिक जनाज़े पे मेरे अश्क बहाना जरूरी था
क़त्ल किसने किया ये बताना जरूरी था
सजाया था हमने भी इक आशियाना अपना
जमीं समन्दर की थी डूब जाना जरूरी था
सहमे थे लोग ऊजाले की बंदिशो से
अब अमावस का लौट आना जरूरी था
नही जानते क्या काफ़िया रदीफ़ क्या
उस गज़ल का होंठो पे आना जरूरी था
भले समझ ना आया इक हर्फ़ भी हमे
ग़ज़ल तेरी थी मुस्कुराना जरूरी था"