सुमित शर्मा
मेरी फांसी मुकर्रर होने पर वो मुस्कुराई बहुत
न जाने कौन सा वहम उसके सर चढ़ गया है
तेरे जाने के बाद जीने की तमन्ना तो यूं भी ना थी
अरे वो शख्स तो मेरे हक में फैसला कर गया है
sumit Sharma
पुरानी दोस्ती को इस नई ताकत से मत तोलो
यूं संबंधों की तुरपाई षड्यंत्र से मत खोलो
मेरे लहजे की छेनी से गणे कुछ देवता जो कल
मेरे लफ्जों पे मरते थे बो कहते हैं मत बोलो
सुमित शर्मा
मैं सुमित शर्मा
सांसे चलती है मगर बदन में हरकत नहीं होती
यह खुद को मारकर जीना कैसा है
और यह शराब मुझे मीठी लगती है
यह बताओ जहर पीना कैसा है
इस सर्द रात में बो ना जाने किसका जिस्म ओढ़ रही होगी
इस सर्दी के मौसम में मुझे पसीना कैसा है
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here