आढ्यो वापि दरिद्रो वा दु:खित: सुखितोऽपि वा।
निर्दोषो वा सदोषो वा वयस्य: परमा गति:।।
चाहे धनी हो या निर्धन, दुःखी हो या सुखी, निर्दोष हो या सदोष - मित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा सहारा होता है ।
Source- किष्किन्धाकाण्ड अष्टम सर्ग
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विश्वयोगदिवसस्य कोटिशः शुभकामनाः
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः ।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥
भावार्थ : उस आसन पर बैठकर चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करे।
संस्कृतं मम जीवनध्येयम्
गलतियों से जुदा तू भी नही, मैं भी नही,
दोनों इंसान हैं, खुदा तू भी नही, मैं भी नहीं
तू मुझे औऱ मैं तुझे इल्जाम देते हैं मगर,
अपने अंदर झाँकता तू भी नही, मैं भी नही
गलतफमियों ने कर दी दोनो मे पैदा दूरियां
वरना बुरा तूभी नही, मैं भी नही
-पल्लवी गोयल
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