*मैनें बदलते देखा है,
नीले से काला होता आसमाँ,
पारदर्शी से मटमैली होती नदियाँ,
मैदानों से बड़े बड़े घर, लाल से काला लहू,
हँसते हँसते रोने वाली आँखें,
कहते कहते चुप हो जाने वाले लब...
“मैं तुम्हारे बिन नही रह सकता”
से
“तुमने मेरा जीना हराम कर रखा है”
तक पहुचतें लोग,
तुम्हें !!! *
*हाँ मैंने तुम्हें भी देखा है... बदलते हुए!
मैनें बदलते देखा है!*
©अजय शर्मा
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